Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 409
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
3
स्वा꣣दो꣢रि꣣त्था꣡ वि꣢षू꣣व꣢तो꣣ म꣡धोः꣢ पिबन्ति गौ꣣꣬र्यः꣢꣯ । या꣡ इन्द्रे꣢꣯ण स꣣या꣡व꣢री꣣र्वृ꣢ष्णा꣣ म꣡द꣢न्ति शो꣣भ꣢था꣣ व꣢स्वी꣣र꣡नु꣢ स्व꣣रा꣡ज्य꣢म् ॥४०९॥
स्वर सहित पद पाठस्वा꣣दोः꣢ । इ꣣त्था꣢ । वि꣣षुव꣡तः꣢ । वि꣣ । सुव꣡तः꣢ । म꣡धोः꣢꣯ । पि꣣बन्ति । गौ꣡र्यः꣢꣯ । याः । इ꣡न्द्रे꣢꣯ण । स꣣या꣡व꣢रीः । स꣣ । या꣡व꣢꣯रीः । वृ꣡ष्णा꣢꣯ । म꣡द꣢꣯न्ति । शो꣣भ꣡था꣢ । व꣡स्वीः꣢꣯ । अ꣡नु꣢꣯ । स्व꣣रा꣡ज्य꣢म् । स्व꣣ । रा꣡ज्य꣢꣯म् ॥४०९॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वादोरित्था विषूवतो मधोः पिबन्ति गौर्यः । या इन्द्रेण सयावरीर्वृष्णा मदन्ति शोभथा वस्वीरनु स्वराज्यम् ॥४०९॥
स्वर रहित पद पाठ
स्वादोः । इत्था । विषुवतः । वि । सुवतः । मधोः । पिबन्ति । गौर्यः । याः । इन्द्रेण । सयावरीः । स । यावरीः । वृष्णा । मदन्ति । शोभथा । वस्वीः । अनु । स्वराज्यम् । स्व । राज्यम् ॥४०९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 409
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 7;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 7;
Acknowledgment
पदार्थ -
(इत्था) यह सत्य है “इत्था सत्यनाम” [निघं॰ ३.१०] (गौर्यः) हमारी वाणियाँ (स्वादोः) स्वाद वाले—(विषूवतः) विशेष सवन निष्पादन वाले—(मधोः) मधुर ओ३म् नाम का (पिबन्ति) जब पान करती हैं मानो (वृष्णा-इद्रेण) सुखवर्षक परमात्मा के साथ (याः सयावरीः) जो समानगति वाली हो (मन्दन्ति) हर्ष को प्राप्त होती हैं (स्वराज्यम्-अनु) स्वराज्य—आत्मा के स्वराज्य के अनुरूप (वस्वीः) वसने वाली हुई (शोभथाः) शोभा को प्राप्त होती हैं।
भावार्थ - यह सत्य है वाणियाँ जब निरन्तर स्वाद वाले विशेष निष्पन्न किए मधुर ओ३म जप का पान करती हैं तो उस सुखवर्षक परमात्मा के साथ समानगति वाली हो हर्षित होती हैं और तब आत्मा के स्वराज्य के अनुसार वसने वाली शोभा युक्त होती हैं॥१॥
विशेष - ऋषिः—गोतमः (परमात्मा में अत्यन्त गतिमान्)॥ छन्दः—पंक्तिः॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें