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अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 31

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  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 31/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आशापाला वास्तोष्पतयः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पाशविमोचन सूक्त

    य आशा॑नामाशापा॒लाश्च॒त्वार॒ स्थन॑ देवाः। ते नो॒ निरृ॑त्याः॒ पाशे॑भ्यो मु॒ञ्चतांह॑सोअंहसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । आशा॑नाम् । अ॒शा॒ऽपा॒ला: । च॒त्वार॑: । स्थन॑ । दे॒वा॒: । ते । न॒: । नि:ऋ॑त्या: । पाशे॑भ्य: । मुञ्चत॑ । अंह॑स:ऽअंहस: ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य आशानामाशापालाश्चत्वार स्थन देवाः। ते नो निरृत्याः पाशेभ्यो मुञ्चतांहसोअंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । आशानाम् । अशाऽपाला: । चत्वार: । स्थन । देवा: । ते । न: । नि:ऋत्या: । पाशेभ्य: । मुञ्चत । अंहस:ऽअंहस: ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 31; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (देवाः) हे प्रकाशमय देवताओ ! (ये) जो तुम (आशानाम्) सब दिशाओं के मध्य (चत्वारः) प्रार्थना के योग्य [अथवा चार] (आशापालाः) आशाओं के रक्षक (स्थन) वर्तमान हो, (ते) वे तुम (नः) हमें (निर्ऋत्याः) अलक्ष्मी वा महामारी के (पाशेभ्यः) फंदों से और (अंहसो−अंहसः) प्रत्येक पाप से (मुञ्चत) छुड़ाओ ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्यों को प्रयत्नपूर्वक सब उत्तम पदार्थों [अथवा चारों पदार्थ, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष] को प्राप्त करके सब क्लेशों का नाश करना चाहिये ॥२॥

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