अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ऐनं॒ वशो॑ गच्छतिव॒शी व॒शिनां॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । ए॒न॒म् । वश॑: । ग॒च्छ॒ति॒ । व॒शी । व॒शिना॑म् । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१०.९॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐनं वशो गच्छतिवशी वशिनां भवति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठआ । एनम् । वश: । गच्छति । वशी । वशिनाम् । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१०.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 11; मन्त्र » 9
विषय - अतिथिसत्कार के विधान का उपदेश।
पदार्थ -
(एनम्) उस [गृहस्थ] को (वशः) प्रधानत्व (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, वह (वशिनाम्) वशकर्ताओं का (वशी) वशकर्ता [शासक] (भवति) होता है, जो [गृहस्थ] (एवम्) ऐसे [विद्वान्] को (वेद) जानता है ॥९॥
भावार्थ - गृहस्थ विद्वान् नीतिज्ञ अतिथि का प्रभुत्व रखकर शासकों का शासक होवे ॥९॥
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