अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
सूक्त - दुःस्वप्ननासन
देवता - प्राजापत्या गायत्री
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
स ग्राह्याः॑पाशा॒न्मा मो॑चि ॥
स्वर सहित पद पाठस: । ग्राह्या॑: । पाशा॑त् । मा । मो॒चि॒ ॥८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
स ग्राह्याःपाशान्मा मोचि ॥
स्वर रहित पद पाठस: । ग्राह्या: । पाशात् । मा । मोचि ॥८.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
विषय - शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ -
(सः) वह [कुमार्गी] (ग्राह्याः) गठिया रोग के (पाशात्) बन्धन से (मा मोचि) न छूटे ॥३॥
भावार्थ - विद्वान् धर्मवीर राजासुवर्ण आदि धन और सब सम्पत्ति का सुन्दर प्रयोग करे और अपने प्रजागण और वीरों कोसदा प्रसन्न रख कर कुमार्गियों को कष्ट देकर नाश करे ॥१-४॥
टिप्पणी -
३−(सः) कुमार्गी (ग्राह्याः) ग्राहीरोगस्य (पाशात्) बन्धनात् (मा मोचि) न मुक्तो भवतु ॥