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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 8/ मन्त्र 31
    सूक्त - दुःस्वप्ननासन देवता - त्रिपदा निचृत गायत्री छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    तस्मा॑द॒मुंनिर्भ॑जामो॒ऽमुमा॑मुष्याय॒णम॒मुष्याः॑ पु॒त्रम॒सौ यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त् । अ॒मुम् । नि: । भ॒जा॒म॒: । अ॒मुम् । आ॒मु॒ष्या॒य॒णम् । अ॒मुष्या॑: । पु॒त्रम् । अ॒सौ । य: ॥८.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मादमुंनिर्भजामोऽमुमामुष्यायणममुष्याः पुत्रमसौ यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात् । अमुम् । नि: । भजाम: । अमुम् । आमुष्यायणम् । अमुष्या: । पुत्रम् । असौ । य: ॥८.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 31

    पदार्थ -
    (तस्मात्) उस [पद] से (अमुम्) अमुक (अमुम्) अमुक पुरुष (आमुष्यायणम्) अमुक पुरुष के सन्तान, (अमुष्याः) अमुक स्त्री के (पुत्रम्) पुत्र को (निः भजामः) हम भागरहित करतेहैं, (असौ यः) वह जो [कुमार्गी] है−[म० २] ॥३१॥

    भावार्थ - विद्वान् धर्मवीर राजासुवर्ण आदि धन और सब सम्पत्ति का सुन्दर प्रयोग करे और अपने प्रजागण और वीरों कोसदा प्रसन्न रख कर कुमार्गियों को कष्ट देकर नाश करे॥३१॥

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