अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 8/ मन्त्र 32
सूक्त - दुःस्वप्ननासन
देवता - आसुरी पङ्क्ति
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
समृ॒त्योःपड्वी॑शा॒त्पाशा॒न्मा मो॑चि ॥
स्वर सहित पद पाठस: । मृ॒त्यो: । पड्वी॑शात् । पाशा॑त् । मा । मो॒चि॒ ॥८.३२॥
स्वर रहित मन्त्र
समृत्योःपड्वीशात्पाशान्मा मोचि ॥
स्वर रहित पद पाठस: । मृत्यो: । पड्वीशात् । पाशात् । मा । मोचि ॥८.३२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 8; मन्त्र » 32
विषय - शत्रु के नाश करने का उपदेश।
पदार्थ -
(सः) वह [कुमार्गी] (मृत्योः) मृत्यु की (पड्वीशात्) बेड़ी के प्रवेशवाले (पाशात्) बन्धन से (मामोचि) न छूटे ॥३२॥
भावार्थ - विद्वान् धर्मवीर राजासुवर्ण आदि धन और सब सम्पत्ति का सुन्दर प्रयोग करे और अपने प्रजागण और वीरों कोसदा प्रसन्न रख कर कुमार्गियों को कष्ट देकर नाश करे॥३२॥
टिप्पणी -
३२−(मृत्योः) मरणस्य (पड्वीशात्) अ० ६।९६।२। सर्त्तेरटिः। उ० १।१३४। पश बन्धने-अटि, डित्+विशप्रवेशे-क, दीर्घः। पाशप्रवेशयुक्तात्। अन्यत् पूर्ववत्-म० १-४ ॥