अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं न॒ इन्द्रो॒ वसु॑भिर्दे॒वो अ॑स्तु॒ शमा॑दि॒त्येभि॒र्वरु॑णः सु॒शंसः॑। शं नो॑ रु॒द्रो रु॒द्रेभि॒र्जला॑षः॒ शं न॒स्त्वष्टा॒ ग्नाभि॑रि॒ह शृ॑णोतु ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। इन्द्रः॑। वसु॑ऽभिः। दे॒वः। अ॒स्तु॒। शम्। आ॒दि॒त्येभिः॑। वरु॑णः। सु॒ऽशंसः॑। शम्। नः॒। रु॒द्रः। रु॒द्रेभिः॑। जला॑षः। शम्। नः॒। त्वष्टा॑। ग्नाभिः॑। इ॒ह। शृ॒णो॒तु॒ ॥१०.६॥
स्वर रहित मन्त्र
शं न इन्द्रो वसुभिर्देवो अस्तु शमादित्येभिर्वरुणः सुशंसः। शं नो रुद्रो रुद्रेभिर्जलाषः शं नस्त्वष्टा ग्नाभिरिह शृणोतु ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। इन्द्रः। वसुऽभिः। देवः। अस्तु। शम्। आदित्येभिः। वरुणः। सुऽशंसः। शम्। नः। रुद्रः। रुद्रेभिः। जलाषः। शम्। नः। त्वष्टा। ग्नाभिः। इह। शृणोतु ॥१०.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 6
विषय - सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पदार्थ -
(देवः) प्रकाशमान (इन्द्रः) सूर्य (वसुभिः) अनेक धनों वा किरणों से (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो, (सुशंसः) उत्तम गुणवाला (वरुणः) जल (आदित्येभिः) सूर्य के किरणों के साथ (शम्) शान्तिदायक हो। (जलाषः) जीवों की अभिलाषा पूरी करनेहारा (रुद्रः) ज्ञानदाता परमेश्वर (रुद्रेभिः) ज्ञानदाता मुनियों द्वारा (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (शम्) शान्तिदायक (त्वष्टा) विश्वकर्मा जगदीश्वर (ग्नाभिः) [हमारी] वाणियों द्वारा (इह) यहाँ पर (नः) हमारी [प्रार्थना] (शृणोतु) सुने ॥६॥
भावार्थ - जो मनुष्य सूर्य वा प्रकाश और जलादि की विद्या में निपुण होके परमात्मा के ज्ञान को प्राप्त होते हैं, वे सदा सुख पाते हैं ॥६॥
टिप्पणी -
६−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) सूर्यः (वसुभिः) धनैः। किरणैः (देवः) प्रकाशमानः (अस्तु) (शम्) (आदित्येभिः) आदित्य-ण्य। आदित्यकिरणैः (वरुणः) जलसमूहः (सुशंसः) उत्तमगुणयुक्तः (शम्) (नः) (रुद्रः) रुतो ज्ञानस्य राता दाता (रुद्रेभिः) ज्ञानदातृभिर्मुनिभिः (जलाषः) जनी जनने ड+लष वाञ्छायाम्-घञ्। जानां जातानां लषो वाञ्छा यस्मात् सः (शम्) (नः) अस्माकं प्रार्थनाम् (त्वष्टा) विश्वकर्मा सर्वकर्ता (ग्नाभिः) वाग्भिः-निघ० १।११ (इह) अस्मिन् विषये (शृणोतु) आकर्णयतु ॥