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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 19/ मन्त्र 8
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुब्गर्भा पङ्क्तिः सूक्तम् - शर्म सूक्त

    ब्रह्म॑ ब्रह्मचा॒रिभि॒रुद॑क्राम॒त्तां पुरं॒ प्र ण॑यामि वः। तामा वि॑शत॒ तां प्र वि॑शत॒ सा वः॒ शर्म॑ च॒ वर्म॑ च यच्छतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑। ब्र॒ह्म॒चा॒रिऽभिः॑। उत्। अ॒क्रा॒म॒त्। ताम्। पुर॑म्। प्र। न॒या॒मि॒। वः॒। ताम्। आ। वि॒श॒त॒। ताम्। प्र। वि॒श॒त॒। सा। वः॒। शर्म॑। च॒। वर्म॑। च॒। य॒च्छ॒तु॒ ॥१९.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्म ब्रह्मचारिभिरुदक्रामत्तां पुरं प्र णयामि वः। तामा विशत तां प्र विशत सा वः शर्म च वर्म च यच्छतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्म। ब्रह्मचारिऽभिः। उत्। अक्रामत्। ताम्। पुरम्। प्र। नयामि। वः। ताम्। आ। विशत। ताम्। प्र। विशत। सा। वः। शर्म। च। वर्म। च। यच्छतु ॥१९.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 19; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (ब्रह्म) वेदज्ञान (ब्रह्मचारिभिः) ब्रह्मचारियों [वीर्यनिग्रह से ईश्वर और वेद को प्राप्त होनेवालों] के साथ (उत् अक्रामत्) ऊँचा चढ़ा है, (ताम्) उस (पुरम्) अग्रगामिनी शक्ति......[मन्त्र १] ॥८॥

    भावार्थ - जैसे ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्य के उत्तम नियमों के पालन से संसार का उपकार करते हैं, वैसे ही सब मनुष्यों को करना चाहिये ॥८॥

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