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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 26/ मन्त्र 5
    सूक्त - सविता देवता - पशुसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पशुसंवर्धन सूक्त

    आ ह॑रामि॒ गवां॑ क्षी॒रमाहा॑र्षं धा॒न्यं रस॑म्। आहृ॑ता अ॒स्माकं॑ वी॒रा आ पत्नी॑रि॒दमस्त॑कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ह॒रा॒मि॒ । गवा॑म् । क्षी॒रम् । आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । धा॒न्य᳡म् । रस॑म् । आऽहृ॑ता: । अ॒स्माक॑म् । वी॒रा: । आ । पत्नी॑: । इ॒दम्। अस्त॑कम् ॥२६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ हरामि गवां क्षीरमाहार्षं धान्यं रसम्। आहृता अस्माकं वीरा आ पत्नीरिदमस्तकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । हरामि । गवाम् । क्षीरम् । आ । अहार्षम् । धान्यम् । रसम् । आऽहृता: । अस्माकम् । वीरा: । आ । पत्नी: । इदम्। अस्तकम् ॥२६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 26; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (गवाम्) गौओं के (क्षीरम्) दूध को (आ हरामि) मैं प्राप्त करूँ, [क्योंकि दूध से] (धान्यम्) पोषणवस्तु अन्न और (रसम्) शरीरिक धातु को (आ अहार्षम्) मैंने पाया है। (अस्माकम्) हमारे (वीराः) वीर पुरुष (आहृताः) लाये गये हैं और (पत्नीः=पत्न्यः) पत्नियाँ भी (इदम्) इस (अस्तकम्=अस्तम्) घर में (आ=आहृताः) लायी गयी हैं ॥५॥

    भावार्थ - मनुष्यों को सदा गौओं की रक्षा करनी चाहिये, जिससे सब स्त्री-पुरुष दूध-घी का सेवन करके हृष्ट-पुष्ट होकर शूरवीर रहें और घरों में सब प्रकार की सम्पत्ति बढ़ती जावे ॥५॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥

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