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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
    सूक्त - शौनकः देवता - अग्निः छन्दः - विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - सपत्नहाग्नि

    अति॒ निहो॒ अति॒ सृधो ऽत्यचि॑त्ती॒रति॒ द्विषः॑। विश्वा॒ ह्य॑ग्ने दुरि॒ता तर॒ त्वमथा॒स्मभ्यं॑ स॒हवी॑रं र॒यिं दाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अति॑ । निह॑: । अति॑ । सृध॑: । अति॑ । अचि॑त्ती: । अति॑ । द्विष॑: । विश्वा॑ । हि । अ॒ग्ने॒ । दु॒:ऽइ॒ता । त॒र॒ । त्वम् । अथ॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । स॒हऽवी॑रम् । र॒यिम् । दा॒: ॥६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अति निहो अति सृधो ऽत्यचित्तीरति द्विषः। विश्वा ह्यग्ने दुरिता तर त्वमथास्मभ्यं सहवीरं रयिं दाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अति । निह: । अति । सृध: । अति । अचित्ती: । अति । द्विष: । विश्वा । हि । अग्ने । दु:ऽइता । तर । त्वम् । अथ । अस्मभ्यम् । सहऽवीरम् । रयिम् । दा: ॥६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (अग्ने) हे तेजस्वी राजन् ! [(अति) अत्यन्त (निहः) शत्रुनाशक शूर होकर। अथवा] (निहः) नीच गतिवालों को (अति=अतीत्व) लाँघकर, (सृधः) हिंसकों को (अति) लाँघकर, (अचित्तीः) पापबुद्धि प्रजाओं को (अति) लाँघकर और (द्विषः) द्वेष करनेवालों का (अति) तिरस्कार करके, (त्वम्) तू (हि) ही (विश्वा=विश्वानि) सब (दुरिता=०–तानि) संकटों को (तर) पारकर, (अथ) और (अस्मभ्यम्) हमें (सहवीरम्) वीर पुरुषों के सहित (रयिम्) धन (दाः) दे ॥५॥

    भावार्थ - राजा सावधानी से प्रजा के सब क्लेशों को हरे और ऐसा प्रयत्न करे कि प्रजा के सब पुरुष उत्साही, शूरवीर और धनाढ्य हों ॥५॥ २–इस मन्त्र का पाठ यजुर्वेद २७।६। में ऐसा है। अति॒ निहो॒ अति॒स्रिधोऽत्यचि॑त्ति॒मत्यरा॑तिमग्ने। विश्वा॒ ह्य॑ग्ने॒ दुरि॒ता सह॒स्वाथा॒स्मभ्य॑ स॒ह वी॑रा र॒यिं दाः ॥१॥ (अग्ने) हे तेजस्विन् राजन् ! (अति निहः) अत्यन्त शूर होकर (स्रिधः) दुष्टों को (अति) हटाकर, (अचित्तिम्) अज्ञान को (अति) हटाकर, (अरातिम्) कंजूसपन को (अति) हटाकर (विश्वा दुरितानि) सब विघ्नों को (सहस्व) दबा दे, (अथ) और (अस्मभ्यम्) हमें (सहवीराम्) वीरों से युक्त सेना और (रयिम्) धन (दाः) दे ॥ १–(सृधः) के स्थान पर सायणभाष्य में (स्रधः) पद है ॥

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