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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 128

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 128/ मन्त्र 8
    सूक्त - देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अप्र॑पा॒णा च॑ वेश॒न्ता रे॒वाँ अप्रति॑दिश्ययः। अय॑भ्या क॒न्या कल्या॒णी तो॒ता कल्पे॑षु सं॒मिता॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप्र॑पा॒णा । च॑ । वेश॒न्ता । रे॒वान् । अप्रति॑दिश्यय: ॥ अय॑भ्या । क॒न्या॑ । कल्या॒णी । तो॒ता । कल्पे॑षु । सं॒मिता॑ ॥१२८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्रपाणा च वेशन्ता रेवाँ अप्रतिदिश्ययः। अयभ्या कन्या कल्याणी तोता कल्पेषु संमिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप्रपाणा । च । वेशन्ता । रेवान् । अप्रतिदिश्यय: ॥ अयभ्या । कन्या । कल्याणी । तोता । कल्पेषु । संमिता ॥१२८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 128; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (च) जैसे (अप्रपाणा) बिन पनघटवाला (वेशन्ता) सरोवर है, [वैसे ही] (अप्रतिदिश्ययः) प्रतिदान का न करनेवाला (रेवान्) धनवान् और (अयभ्या) मैथुन के अयोग्य [रोग आदि से पीड़ित, सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ] (कल्याणी) सुन्दर (कन्या) कन्या है, (तोता) यह-यह कर्म (कल्पेषु) शास्त्रविधानों में (संमिता) प्रमाणित है ॥८॥

    भावार्थ - बिना पनघट के जल से भरा सरोवर, बिना प्रतिदान के बड़ा धनी, और बिना सन्तान उत्पन्न करने के रूपवती स्त्री निष्फल है ॥८॥

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