अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 2
को अ॑सि॒द्याः पयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक: । असि॒द्या: । पय॑: । १३०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
को असिद्याः पयः ॥
स्वर रहित पद पाठक: । असिद्या: । पय: । १३०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 2
विषय - मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(कः) कौन (असिद्याः) बिना बन्धनवाली क्रिया के (पयः) अन्न को ॥२॥
भावार्थ - मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥
टिप्पणी -
२−(कः) (असिद्याः) षिञ् बन्धने-क्तिन्, तस्य दः। असित्याः। बन्धनरहितक्रियायाः (पयः) पय गतौ-असुन्। अन्नम्-निघ० २।७ ॥