अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 3
को अर्जु॑न्याः॒ पयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक: । अर्जु॑न्या॒ । पय॑: ॥१३०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
को अर्जुन्याः पयः ॥
स्वर रहित पद पाठक: । अर्जुन्या । पय: ॥१३०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 3
विषय - मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(कः) कौन (अर्जुन्याः) उद्यमवाली क्रिया के (पयः) अन्न को ॥३॥
भावार्थ - मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥
टिप्पणी -
३−(कः) (अर्जुन्याः) अर्जेर्णिलुक् च। उ० २।८। अर्ज अर्जने-उनन् ङीप्। उद्योगिन्याः क्रियायाः (पयः) म० २ ॥