Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 3
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुषी गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    64

    को अर्जु॑न्याः॒ पयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । अर्जु॑न्या॒ । पय॑: ॥१३०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अर्जुन्याः पयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । अर्जुन्या । पय: ॥१३०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (कः) कौन (अर्जुन्याः) उद्यमवाली क्रिया के (पयः) अन्न को ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥

    टिप्पणी

    ३−(कः) (अर्जुन्याः) अर्जेर्णिलुक् च। उ० २।८। अर्ज अर्जने-उनन् ङीप्। उद्योगिन्याः क्रियायाः (पयः) म० २ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सोम-यज्ञ

    पदार्थ

    १.(क:) = कौन (बहुलिमा) = शक्तियों के बाहुल्यवाले (इषूनि) = सोमयज्ञों को-शरीर में ही प्रतिदिन सोम [वीर्य] की आहुति देनेरूप यज्ञों को (अर्य) = [ऋगतौ] प्राप्त होता है। शक्तियों के बाहुल्य को प्राप्त करानेवाले इन सोमयज्ञों का करनेवाला यह ब्रह्मचारी ही तो होता है। सोम-रक्षण द्वारा यह अपने में शक्ति का संचय करता है। २. (असिद्याः) = [अविद्यमाना सिति: बन्धनं यस्याः]-गृहस्थ में रहते हुए भी विषयों में अनासक्तवृत्ति का (पय:) = [semen virile] (वीर्यक:) = कौन-सा होता है। गृहस्थ में होते हुए भी जो विषय-विलास के जीवनवाला नहीं बन जाता, वह सु-वीर्य बनता ही है। ३. (अर्जुन्या:) = [अर्जुन श्वेत] राग-द्वेष से अनाक्रान्त शुद्ध [श्वेत] चित्तवृत्तिवाले का (पय:) = वीर्य (क:) = कौन-सा होता है? गृहस्थ के कार्यों को समाप्त करके मनुष्य वानप्रस्थ बनता है। इस वानप्रस्थ में राग-द्वेष से ऊपर उठने पर शरीर में वीर्य शुद्ध [उबाल से रहित] बना रहता है। [४] वानप्रस्थ से ऊपर उठकर मनुष्य संन्यस्त होता है। इस संन्यास में 'काणी' वृत्ति को अपनाता है। इधर-उधर भटकनेवाली इन्द्रियों व मन को यह अन्तर्मुखी करने का प्रयत्न करता है उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करता है। इस कार्या:-काणी वृत्ति का पयः-वीर्य का कौन-सा है? संन्यस्त होकर-सब इन्द्रियों को अपने अन्दर आकृष्ट करके यह वीर्य को सुरक्षित करनेवाला होता है।

    भावार्थ

    ब्रह्मचर्य तो है ही सोमयज्ञ। इस आश्रम में सोम [वीर्य] को शरीर में सरक्षित रखना होता है। गृहस्थ में भी हम विषयों से बद्ध न हो जाएँ। वानप्रस्थ में अत्यन्त शुद्धवृत्ति [अर्जुनी]-वाले बनें। संन्यास में इन्द्रियों व मन को अपने अन्दर आकृष्ट करनेवाले बनें। इसप्रकार हम आजीवन सोमयज्ञ करनेवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (कः) कौन (अर्जुन्याः) शुभ्र अर्थात् सात्त्विक चित्तवृत्तियों का (पयः) फल देता है?

    टिप्पणी

    [अर्जुनः=शुक्लः (उणादि कोष ३.५८), वैदिक यन्त्रालय, अजमेर तथा “अहश्च कृष्णमहरर्जुनं च” (ऋ০ ६.९.१)। अर्जुनम्=शुक्लम् (निरु০ २.६.२१)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भूमि और स्त्री।

    भावार्थ

    (अर्जुन्याः) अर्जुनी, श्वेत गौ का (पयः) दूध (कः) कौन ग्रहण करता है ! (कः) प्रजापति राजा ही (अर्जुन्याः) श्वेत धातु रत्न आदि से पूर्ण पृथिवी और धनार्जन करने वाली प्रजा का (पयः) पुष्टिकारक, धनैश्वर्य आदि ग्रहण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Who brings you the fruit of enlightened eats of the mind?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Who does attain the corn of shining effort?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Who does attain the corn of shining effort?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Where? Which learned person of ripe and mature knowledge should I ask this question? (i.e., it is not an easy thing to find' out such a person, hence the repetition of the question).

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(कः) (अर्जुन्याः) अर्जेर्णिलुक् च। उ० २।८। अर्ज अर्जने-उनन् ङीप्। उद्योगिन्याः क्रियायाः (पयः) म० २ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (কঃ) কে (অর্জুন্যাঃ) উদ্যমশীল ক্রিয়ার (পয়ঃ) অন্নকে ॥৩॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বিবেকী, ক্রিয়াকুশল বিদ্বানদের থেকে শিক্ষা গ্রহণ করে বিদ্যাবল দ্বারা অবিশ্বাস্য, নতুন-নতুন আবিষ্কার করে উদ্যোগী হোক ॥১-৬॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (কঃ) কে (অর্জুন্যাঃ) শুভ্র অর্থাৎ সাত্ত্বিক চিত্তবৃত্তির (পয়ঃ) ফল প্রদান করে?

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top