अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 7
यवा॑नो यति॒ष्वभिः॑ कुभिः ॥
स्वर सहित पद पाठयवा॑न: । यति॒ष्वभि॑: । कुभि: ॥१३०.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यवानो यतिष्वभिः कुभिः ॥
स्वर रहित पद पाठयवान: । यतिष्वभि: । कुभि: ॥१३०.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ
(यवानः) युवा [बलवान्] (यतिस्वभिः) यतियों [यत्न करनेवालों] में प्रकाशमान, (कुभिः) ढकलेनेवाला [प्रतापवाला] ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य शरीर और आत्मा से बलवान् होकर भूमि की रक्षा और विद्या की बढ़ती करें ॥७-१०॥
टिप्पणी
७−(यवानः) सम्यानच् स्तुवः। उ० २।८९। यु मिश्रणामिश्रणयोः-आनच्। युवा। बलवान् (यतिस्वभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८, यती यत्ने-इन्। इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। षुभ षुम्भ भाषणभासनहिंसनेषु-इन् कित्। उकारस्य वः। यतिषु यत्नशीलेषु दीप्यमानः (कुभिः) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। कुभ कुभि आच्छादने-इन् कित्। आच्छादकः प्रतापवान् ॥
विषय
सुन्दर जीवन
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार यह वीर्यरक्षण करनेवाला-सोमयज्ञ करनेवाला व्यक्ति (यवान:) = [यु मिश्रणामिश्रणयोः] अपने से बुराइयों को दूर करता है और अच्छाइयों का अपने से मिश्रण करता है। यह (यतिस्वभिः) = [यति+स्व-भा+इ] संयत जीवनवाला व आत्मदीप्तिवाला होता है। (कु-भि:) = [कु+भा+इ] इस पृथिवी पर अपने कर्मों से यह दीस होता है। २. (अकुप्यन्तः) = [कुप्+ सच-अन्त] यह कभी क्रोध नहीं करता। (कुपायकु:) = इस पृथिवी पर सबका रक्षण करनेवाला बनता है। ३. (आमणक:) = [मण् to sound] यह चारों ओर ज्ञानोपदेश करनेवाला होता है। (मणत्सक:) = सदा स्तुतिवचनों के उच्चारण के स्वभाववाला बनता है। ४. यह मणत्सक इसप्रकार प्रभु का स्मरण करता है कि [क] (देव) = प्रभो! आप प्रकाशमय हो-दिव्यगुणों के पुञ्ज हो। तु-दिव्यगुणों के पुञ्ज होने के साथ आप (अ-प्रतिसूर्य) = एक अद्वितीय सूर्य हो। सूर्य के समान अन्धकारमात्र को विनष्ट करनेवाले हो। ५. यह प्रभु-स्मरण मणत्सक को भी 'देव व सूर्य' बनने की प्रेरणा देता है।
भावार्थ
सोम का रक्षण करनेवाला अनुपम सुन्दर जीवनवाला बनता है। [क] यह ब्रह्मचर्याश्रम में बुराइयों को दूर करके अच्छाइयों का ग्रहण करता है [ख] संयत जीववाला व आत्मदीसिवाला होता है [ग] इस पृथिवी पर यशोदीप्त होता है [घ] गृहस्थ में क्रोध नहीं करता [ङ] सब सन्तानों का रक्षण करता है [च] ज्ञान का प्रचार करता है [छ] प्रभु का स्तवन करता है कि आप दिव्यगुणों के पुञ्ज हो, ज्ञान के सूर्य हो। इस स्तवन से वह ऐसा बनने की ही प्रेरणा लेता है। अब संन्यस्थ होकर स्वयं देव व सूर्य बनता है।
भाषार्थ
और ऐसे सद्गुरु से प्रार्थना करो कि हे सद्गुरो! (कुभिः) पार्थिव (यतिस्वभिः) जितने प्रकार के धन हैं, उनसे (नः) हमें (यवा=यव, यवय) छुड़ा दीजिए।
टिप्पणी
[यव=यु अमिश्रणे। कु=पृथिवी; Earth (आप्टे), या कु=कुत्सिक धन। अथवा “यवानः”=यु+शानच्। यवानः भव।]
विषय
भूमि और स्त्री।
भावार्थ
(यवाः) जौ आदि अन्न, खाद्य पदार्थ (कुक्षिम्) पेट में (न उपतिष्ठन्ति) नहीं ठहरते !
टिप्पणी
‘यवानो यतिस्वभिकुभिः’ इति श० पा०। ‘यवावो’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Ask the smart and youthful who shines over the earthly and the industrious.
Translation
The man of industry is forward with the men who are earth and land shining with great effort.
Translation
The man of industry is forward with the men who are shining with great effort.
Translation
O God, may I attain Thee, the Resplendent One.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(यवानः) सम्यानच् स्तुवः। उ० २।८९। यु मिश्रणामिश्रणयोः-आनच्। युवा। बलवान् (यतिस्वभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८, यती यत्ने-इन्। इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। षुभ षुम्भ भाषणभासनहिंसनेषु-इन् कित्। उकारस्य वः। यतिषु यत्नशीलेषु दीप्यमानः (कुभिः) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। कुभ कुभि आच्छादने-इन् कित्। आच्छादकः प्रतापवान् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ
भाषार्थ
(যবানঃ) যুবক [বলবান্] (যতিস্বভিঃ) যতিদের [যত্নশীলদের] মধ্যে প্রকাশমান, (কুভিঃ) আচ্ছাদক [প্রতাপবান] ॥৭॥
भावार्थ
মনুষ্য শরীর এবং আত্মায় বলবান হয়ে ভূমির রক্ষা এবং বিদ্যার বৃদ্ধি করুক ॥৭-১০॥
भाषार्थ
এবং এমন সদ্গুরুর প্রতি প্রার্থনা করো যে, হে সদ্গুরু! (কুভিঃ) পার্থিব (যতিস্বভিঃ) যত প্রকারের ধন আছে, তা থেকে (নঃ) আমাদের/আমাকে (যবা=যব, যবয়) মুক্ত করুন।
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