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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 8
    ऋषि: - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    39

    अकु॑प्यन्तः॒ कुपा॑यकुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अकु॑प्यन्त॒: । कुपा॑यकु: ॥१३०.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अकुप्यन्तः कुपायकुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अकुप्यन्त: । कुपायकु: ॥१३०.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 8
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    हिन्दी (2)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (अकुप्यन्तः) कोप नहीं करनेवाला, (कुपायकुः) पृथिवी की रक्षा करनेवाला ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य शरीर और आत्मा से बलवान् होकर भूमि की रक्षा और विद्या की बढ़ती करें ॥७-१०॥

    टिप्पणी

    ८−(अकुप्यन्तः) जॄविशिभ्यां झच् उ० ३।१२६। कुप क्रोधे-झच्, अत्र कित् यकारश्च। क्रोधरहितः (कुपायकुः) कठिकुषिभ्यां काकुः। उ० ३।७७। काकुरेव ककुः। कु+पा रक्षणे-ककु, यकारश्च। कुं भूमिं पातीति सः। पृथिवीपालः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    The man of peace free from hate and anger is saviour of earth from evil and negativities.

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