अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 13
शृङ्ग॑ उत्पन्न ॥
स्वर सहित पद पाठशृङ्ग॑: । उत्पन्न ॥१३०.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
शृङ्ग उत्पन्न ॥
स्वर रहित पद पाठशृङ्ग: । उत्पन्न ॥१३०.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ
[हे शत्रु !] तू (शृङ्गः) हिंसक (उत्पन्न) उत्पन्न है ॥१३॥
भावार्थ
मनुष्य अपने मित्रों को दुष्टों से कभी न मिलने देवे ॥१३, १४॥
टिप्पणी
१३−(शृङ्गः) शृणातेर्ह्रस्वश्च। उ० १।१२६। शॄ हिंसायाम-गन्, नुट् च। हिंसकः। शत्रुः (उत्पन्न) प्रादुर्भूतोऽसि ॥
विषय
धनाभिमान व प्रभु से दूरी
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार ऐश्वर्यों को कमाने पर यदि एक व्यक्ति दान नहीं देता तो धीमे धीमे उसमें धन का अभिमान आ जाता है। धन को वह प्रभु का दिया हुआ न समझकर 'इद मद्य मया लब्ध, इमं प्राप्स्ये मनोरथम् अपना समझने लगता है और उसे अभिमान हो जाता है। उसके मानों सींग-से निकल आते हैं २. मन्त्र में कहते हैं कि हे उत्पन्न (शृंग) = पैदा हुए हुए सींग! (न: सखा) = हम सबका मित्र वह प्रभु त्वा अभि-तेरी ओर मा विदन् [विदत्]-मत प्राप्त हो। जहाँ धनाभिमान है, वहाँ प्रभु का वास कहाँ? अभिमानी को प्रभु की प्राप्ति नहीं होती। वह तो अपने को ही ईश्वर मानने लगता है 'ईश्वरोऽहम् ।
भावार्थ
धन का त्याग न होने पर धन का अभिमान उत्पन्न हो जाता है और इस अभिमानी को कभी प्रभु की प्राप्ति नहीं होती।
भाषार्थ
(उत्पन्न) हे उत्पन्न हुई (शृङ्ग) शृङ्गार-भावना! काम-वासना!
विषय
भूमि और स्त्री।
भावार्थ
(शृङ्गे) सींग नरसिंगा (उत्पन्ने) बजने पर अर्थात् युद्ध की घोषणा हो जाने पर हे राजन् (त्वा) तुझ को (नः) हमारा (सखा अपि) मित्र राजा भी (मा विदत्) प्राप्त न करे, वह तुझको न जाने कि तु कहां सुरक्षित है।
टिप्पणी
‘शृङ्ग उत्पन्न’ इति श० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
इंग्लिश (4)
Translation
The enemy is a born hostile.
Translation
The enemy is a born hostile.
Translation
Just as the earth is a source of joy and satisfaction to the king or water to the thirsty, so does God, the fountain-head of knowledge and light exhilarate the learned person.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(शृङ्गः) शृणातेर्ह्रस्वश्च। उ० १।१२६। शॄ हिंसायाम-गन्, नुट् च। हिंसकः। शत्रुः (उत्पन्न) प्रादुर्भूतोऽसि ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যপুরুষার্থোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে শত্রু!] তুমি (শৃঙ্গঃ) হিংসক (উৎপন্ন) জাত/উৎপন্ন॥১৩॥
भावार्थ
মনুষ্য নিজের মিত্রদের কখনো দুষ্টদের সাথে দেখা করতে দেবে না॥১৩, ১৪॥
भाषार्थ
(উৎপন্ন) হে উৎপন্ন (শৃঙ্গ) শৃঙ্গার-ভাবনা! কাম-বাসনা!
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