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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 130 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 130/ मन्त्र 1
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुषी पङ्क्तिः सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    61

    को अ॑र्य बहु॒लिमा॒ इषू॑नि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । अ॒र्य॒ । बहु॒लिमा॒ । इषू॑नि: ॥१३०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अर्य बहुलिमा इषूनि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । अर्य । बहुलिमा । इषूनि: ॥१३०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    मनुष्य के लिये पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (कः) कौन मनुष्य (बहुलिमा) बहुत से (इषूनि) इष्ट वस्तुओं को (अर्य) पावे ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य विवेकी, क्रियाकुशल विद्वानों से शिक्षा लेता हुआ विद्याबल से चमत्कारी, नवीन-नवीन आविष्कार करके उद्योगी होवे ॥१-६॥

    टिप्पणी

    [सूचना−पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो ॥]१−(कः) (अर्य) ऋ गतौ-इत्यस्य रूपम्। अर्थात्। प्राप्नुयात् (बहुलिमा) पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा। पा० ।१।१२२। बहुल-इमनिच्। बहूनि (इषूनि) इषु इच्छायाम् उप्रत्ययः कित्। इष्टवस्तूनि ॥

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    इंग्लिश (2)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Who shoots the many arrows of the world at you, O man?

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    Translation

    Who does possess all the wished things?

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    [सूचना−पदपाठ के लिये सूचना सूक्त १२७ देखो ॥]१−(कः) (अर्य) ऋ गतौ-इत्यस्य रूपम्। अर्थात्। प्राप्नुयात् (बहुलिमा) पृथ्वादिभ्य इमनिज्वा। पा० ।१।१२२। बहुल-इमनिच्। बहूनि (इषूनि) इषु इच्छायाम् उप्रत्ययः कित्। इष्टवस्तूनि ॥

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