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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 15/ मन्त्र 2
    सूक्त - गोतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१५

    अध॑ ते॒ विश्व॒मनु॑ हासदि॒ष्टय॒ आपो॑ नि॒म्नेव॒ सव॑ना ह॒विष्म॑तः। यत्पर्व॑ते॒ न स॒मशी॑त हर्य॒त इन्द्र॑स्य॒ वज्रः॒ श्नथि॑ता हिर॒ण्ययः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । ते॒ । विश्व॑म् । अनु॑ । ह॒ । अ॒स॒त् । इ॒ष्टये॑ । आप॑: । नि॒म्नाऽइ॑व । सव॑ना । ह॒विष्म॑त: ॥ यत् । पर्व॑ते । न । स॒म्ऽअशी॑त । ह॒र्य॒त: । इन्द्र॑स्य । वज्र॑: । श्नथि॑ता । हि॒र॒ण्यय॑: ॥१५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध ते विश्वमनु हासदिष्टय आपो निम्नेव सवना हविष्मतः। यत्पर्वते न समशीत हर्यत इन्द्रस्य वज्रः श्नथिता हिरण्ययः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । ते । विश्वम् । अनु । ह । असत् । इष्टये । आप: । निम्नाऽइव । सवना । हविष्मत: ॥ यत् । पर्वते । न । सम्ऽअशीत । हर्यत: । इन्द्रस्य । वज्र: । श्नथिता । हिरण्यय: ॥१५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 15; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (अध) फिर (विश्वम्) सब जगत् (हविष्मतः) दानयोग्य पदार्थोंवाले (ते) तेरे (सवना अनु) ऐश्वर्यों के पीछे (इष्टये) अभीष्ट सिद्धि के लिये (ह) निश्चय करके (असत्) होवे, (आपः) जल (निम्नाइव) जैसे नीचे स्थानों के [पीछे बह चलते हैं]। (यत्) जब (इन्द्रस्य) इन्द्र [अत्यन्त ऐश्वर्यवाले सभाध्यक्ष] का (हर्यतः) कमनीय, (श्नथिता) चूर-चूर करनेवाला, (हिरण्ययः) तेजोमय (वज्रः) वज्र [हथियारों का झुण्ड] (पर्वते न) जैसे पहाड़ पर, (सम्-अशीत) वर्तमान हुआ है ॥२॥

    भावार्थ - जैसे जल ऊँचे स्थान से नीचे स्थान में फैलकर संसार का उपकार करता है, वैसे ही राजा धन का संग्रह करके प्रजापालन करे, और शत्रुओं के मारने में ऐसा दृढ़ उपाय करे, जैसे पहाड़ काटने के लिये दृढ़ हथियार आवश्यक होते हैं ॥२॥

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