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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 15/ मन्त्र 5
    सूक्त - गोतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१५

    भूरि॑ त इन्द्र वी॒र्य तव॑ स्मस्य॒स्य स्तो॒तुर्म॑घव॒न्काम॒मा पृ॑ण। अनु॑ ते॒ द्यौर्बृ॑ह॒ती वी॒र्यं मम इ॒यं च॑ ते पृथि॒वी ने॑म॒ ओज॑से ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भूरि॑ । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । वी॒र्य॑म् । तव॑ । स्म॒सि॒ । अ॒स्य॒ । स्तो॒तु: । म॒घ॒ऽव॒न् । काम॑म् । आ । पृ॒ण॒ ॥ अनु॑ । ते॒ । द्यौ: । बृ॒ह॒ती । वी॒र्य॑म् । म॒मे॒ । इ॒यम् । च॒ । ते॒ । पृ॒थ‍ि॒वी । मे॒मे॒ । ओज॑से ॥१५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूरि त इन्द्र वीर्य तव स्मस्यस्य स्तोतुर्मघवन्काममा पृण। अनु ते द्यौर्बृहती वीर्यं मम इयं च ते पृथिवी नेम ओजसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूरि । ते । इन्द्र । वीर्यम् । तव । स्मसि । अस्य । स्तोतु: । मघऽवन् । कामम् । आ । पृण ॥ अनु । ते । द्यौ: । बृहती । वीर्यम् । ममे । इयम् । च । ते । पृथ‍िवी । मेमे । ओजसे ॥१५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 15; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (ते) तेरा (वीर्यम्) पराक्रम (भूरि) बहुत है, हम (ते) तेरे [प्रजा] (स्मसि) हैं, (मघवन्) हे महाधनी ! (अस्य) इस (स्तोतुः) स्तुति करनेवाले की (कामम्) कामना को (आ) सब ओर से (पृण) तृप्त कर। (ते) तेरे (वीर्यम् अनु) पराक्रम के पीछे (बृहती) बड़ा (द्यौः) आकाश (ममे) नापा गया है, (च) और (ते) तेरे (ओजसे) बल के लिये (इयम्) यह (पृथिवी) पृथिवी (नेमे) झुकी है ॥॥

    भावार्थ - जो विज्ञानी राजा प्रजा को प्रसन्न रखकर विद्वानों का उचित सत्कार करता है, वह वायु विमान आदि से आकाश को, तथा स्थल और जलयान आदि से पृथिवी को वश में करके राज्य की उन्नति करता है ॥॥

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