Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 34

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 34/ मन्त्र 18
    सूक्त - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४

    यः सु॑न्व॒ते पच॑ते दु॒ध्र आ चि॒द्वाजं॒ दर्द॑र्षि॒ स किला॑सि स॒त्यः। व॒यं त॑ इन्द्र वि॒श्वह॑ प्रि॒यासः॑ सु॒वीरा॑सो वि॒दथ॒मा व॑देम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । सु॒न्व॒ते । पच॑ते । दु॒ध्र: । आ । चि॒त् । वाज॑म् । दर्द॑र्षि । स: । किल॑ । अ॒सि॒ । स॒त्य: ॥ व॒यम् । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । वि॒श्वह॑ । प्रि॒यास॑: । सु॒ऽवीरा॑स: । वि॒दथ॑म् । आ । व॒दे॒म॒ ॥३४.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः सुन्वते पचते दुध्र आ चिद्वाजं दर्दर्षि स किलासि सत्यः। वयं त इन्द्र विश्वह प्रियासः सुवीरासो विदथमा वदेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । सुन्वते । पचते । दुध्र: । आ । चित् । वाजम् । दर्दर्षि । स: । किल । असि । सत्य: ॥ वयम् । ते । इन्द्र । विश्वह । प्रियास: । सुऽवीरास: । विदथम् । आ । वदेम ॥३४.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 18

    पदार्थ -
    (यः) जो तू (दुध्रः) पूर्ण होकर (चित्) ही (सुन्वते) तत्त्व निचोड़ते हुए और (पचते) परिपक्व करते हुए के लिये (वाजम्) अत्र [वा बल] (आ दर्दर्षि) फाड़कर देता है, (सः) सो तू (किल) निश्चय करके (सत्यः) सच्चा (असि) है। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] (वयम्) हम (ते) तेरे (प्रियासः) प्यारे होकर (सुवीरासः) सुन्दर वीरोंवाले (विश्वह) सब दिनों (विदथम्) ज्ञान का (आ) सब ओर (वदेम) उपदेश करें ॥१८॥

    भावार्थ - परिपूर्ण सत्यस्वरूप परमात्मा तत्त्वदर्शी परिपक्व ज्ञानियों को धनवान् और बलवान् करता है, उसीके गुणों को विचारकर हम उत्तम वीरोंवाले होवें ॥१८॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top