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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
    सूक्त - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५

    तु॑वि॒ग्रीवो॑ व॒पोद॑रः सुबा॒हुरन्ध॑सो॒ सदे॑। इन्द्रो॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तु॒वि॒ऽग्रीव॑: । व॒पाऽउ॑दर: । सु॒ऽबा॒हु:। अन्‍ध॑स: । मदे॑ । इन्द्र॑: । वृ॒त्राणि॑ । जि॒घ्न॒ते॒ ॥५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुविग्रीवो वपोदरः सुबाहुरन्धसो सदे। इन्द्रो वृत्राणि जिघ्नते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुविऽग्रीव: । वपाऽउदर: । सुऽबाहु:। अन्‍धस: । मदे । इन्द्र: । वृत्राणि । जिघ्नते ॥५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 5; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (तुविग्रीवः) दृढ़ गलेवाला, (वपोदरः) चर्बी से युक्त पेटवाला, (सुबाहुः) बलवान् भुजाओंवाला (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाला पुरुष] (अन्धसः) अन्न रस के (मदे) आनन्द में (वृत्राणि) वैरियों को (जिघ्नते) मारे ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य उत्तम ओषधियों के यथावत् सेवन से पुष्ट और बलवान् होकर शत्रुओं का नाश करे ॥२॥

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