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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 76

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 76/ मन्त्र 2
    सूक्त - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७६

    प्र ते॑ अ॒स्या उ॒षसः॒ प्राप॑रस्या नृ॒तौ स्या॑म॒ नृत॑मस्य नृ॒णाम्। अनु॑ त्रि॒शोकः॑ श॒तमाव॑ह॒न्नॄन्कुत्से॑न॒ रथो॒ यो अस॑त्सस॒वान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ते॒ । अ॒स्या: । उ॒षस॑: । प्र । अप॑रस्या: । नृ॒तौ । स्या॒म॒ । नृऽत॑मस्य । नृ॒णाम् ॥ अनु॑ । त्रि॒ऽशोक॑: । श॒तम् । आ । अ॒व॒ह॒त् । नॄन् । कुत्से॑न: । रथ॑: । य: । अस॑त् । स॒स॒ऽवान् ॥७६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ते अस्या उषसः प्रापरस्या नृतौ स्याम नृतमस्य नृणाम्। अनु त्रिशोकः शतमावहन्नॄन्कुत्सेन रथो यो असत्ससवान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । ते । अस्या: । उषस: । प्र । अपरस्या: । नृतौ । स्याम । नृऽतमस्य । नृणाम् ॥ अनु । त्रिऽशोक: । शतम् । आ । अवहत् । नॄन् । कुत्सेन: । रथ: । य: । असत् । ससऽवान् ॥७६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 76; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (अस्याः) इस और (अपरस्याः) दूसरी [आनेवाली] (उषसः) उषा [प्रभात वेला] के (नृतौ) नृत्य [चेष्टा] में (नृणाम्) नेताओं के (नृतमस्य ते) तुझ सबसे बड़े नेता के [भक्त रहकर] (प्र प्र) बहुत उत्तम (स्याम) हम होवें। (यः) जो (त्रिशोकः) तीन प्रकार [बिजुली, सूर्य और अग्नि] के प्रकाशवाला (रथः) रथ (असत्) होवे, वह [रथ] (ससवान्) सेवन करता हुआ (शतम्) सौ (नॄन्) नेता पुरुषों को (कुत्सेन) मिलनसार ऋषि [सेनापति] के साथ (अनु) अनुकूल रीति से (आ अवहेत्) लावे ॥२॥

    भावार्थ - जैसे प्रभात वेला सूर्य द्वारा प्रकाश करती हुई चली चलती है, वैसे ही मनुष्य अत्यन्त ज्ञानी पुरुष के आश्रय से बिजुली, सूर्य और अग्नि आदि पदार्थों के द्वारा यान विमान आदि बनाकर कार्य सिद्ध करें ॥२॥

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