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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 91

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 91/ मन्त्र 8
    सूक्त - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९१

    ते स॒त्येन॒ मन॑सा॒ गोप॑तिं॒ गा इ॑या॒नास॑ इषणयन्त धी॒भिः। बृह॒स्पति॑र्मिथोअवद्यपेभि॒रुदु॒स्रिया॑ असृजत स्व॒युग्भिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । स॒त्येन । धी॒भि: ॥ मनसा । गोऽपतिम् । गा: । इ॒या॒नास: । इ॒ष॒ण॒य॒न्त॒ । धी॒भि: ॥ बृह॒स्पति॑: । मि॒थ:ऽअवद्यपेभि: । उत् । उ॒स्रिया॑: । अ॒सृ॒ज॒त॒ । स्व॒युक्ऽभि॑: ॥९१.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते सत्येन मनसा गोपतिं गा इयानास इषणयन्त धीभिः। बृहस्पतिर्मिथोअवद्यपेभिरुदुस्रिया असृजत स्वयुग्भिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । सत्येन । धीभि: ॥ मनसा । गोऽपतिम् । गा: । इयानास: । इषणयन्त । धीभि: ॥ बृहस्पति: । मिथ:ऽअवद्यपेभि: । उत् । उस्रिया: । असृजत । स्वयुक्ऽभि: ॥९१.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 91; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    (सत्येन) सच्चे (मनसा) मन से (धीभिः) कर्मों द्वारा (गाः) वेदवाणियों को (इयानासः) पा लेनेवाले (ते) उन [विद्वानों] ने (गोपतिम्) वेदवाणी के स्वामी [परमात्मा] को (इषणयन्त) खोजा है, [कि] (बृहस्पतिः) उस बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमात्मा] ने (उस्रियाः) निवास करनेवाली प्रजाओं को (मिथोअवद्यपेभिः) आपस में पाप से बचानेवाले (स्वयुग्भिः) आत्मा के साथी कर्मों से (उत्) उत्तम रीति पर (असृजत) सृजा है ॥८॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग वेदवाणी द्वारा उत्तम-उत्तम कर्म करके परमात्मा को खोजते हैं कि उसने मनुष्य आदि सृष्टि को उनके पूर्व जन्मों के कर्मफलों के अनुसार उत्पन्न किया है ॥८॥

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