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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्रः, अनड्वान् छन्दः - जगती सूक्तम् - अनड्वान सूक्त

    अ॑न॒ड्वान्दा॑धार पृथि॒वीमु॒त द्याम॑न॒ड्वान्दा॑धारो॒र्वन्तरि॑क्षम्। अ॑न॒ड्वान्दा॑धार प्र॒दिशः॒ षडु॒र्वीर॑न॒ड्वान्विश्वं॒ भुव॑न॒मा वि॑वेश ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न॒ड्वान् । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । उ॒त । द्याम् । अ॒न॒ड्वान् । दा॒धा॒र॒ । उ॒रु । अ॒न्तरि॑क्षम् । अ॒न॒ड्वान । दा॒धा॒र॒ । प्र॒ऽदिश॑: । षट् । उ॒र्वी: । अ॒न॒ड्वान् । विश्व॑म् । भुव॑नम् । आ । वि॒वे॒श॒ ॥११.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनड्वान्दाधार पृथिवीमुत द्यामनड्वान्दाधारोर्वन्तरिक्षम्। अनड्वान्दाधार प्रदिशः षडुर्वीरनड्वान्विश्वं भुवनमा विवेश ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनड्वान् । दाधार । पृथिवीम् । उत । द्याम् । अनड्वान् । दाधार । उरु । अन्तरिक्षम् । अनड्वान । दाधार । प्रऽदिश: । षट् । उर्वी: । अनड्वान् । विश्वम् । भुवनम् । आ । विवेश ॥११.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अनड्वान्) प्राण और जीविका पहुँचानेवाले परमेश्वर ने (पृथिवीम्) पृथिवी (उत) और (द्याम्) सूर्य को (दाधार) धारण किया था। (अनड्वान्) प्राण और जीविका पहुँचानेवाले परमेश्वर ने (उरु) चौड़े (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक वा आकाश को (दाधार) धारण किया था। (अनड्वान्) प्राण और जीविका पहुँचानेवाले परमेश्वर ने (षट्) पूर्वादि, नीचे और उपकारी छह (उर्वीः) चौड़ी (प्रदिशः) महादिशाओं को (दाधार) धारण किया था। (अनड्वान्) प्राण और जीविका पहुँचानेवाले परमेश्वर ने (विश्वं भुवनम्) सब जगत् में (आ विवेश) सब प्रकार प्रवेश किया था ॥१॥

    भावार्थ - पुनरुक्ति निश्चयद्योतक है, अर्थात् एक परमात्मा ही सब जीवनसाधन देकर सब पदार्थों को रचता है, सब मनुष्य भक्तिपूर्वक उसकी अपार महिमा को विचार कर सदा पुरुषार्थ करें ॥१॥

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