Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 9

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    सूक्त - भृगुः देवता - त्रैककुदाञ्जनम् छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त

    प॑रि॒पाणं॒ पुरु॑षाणां परि॒पाणं॒ गवा॑मसि। अश्वा॑ना॒मर्व॑तां परि॒पाणा॑य तस्थिषे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒रि॒ऽपान॑म् । पुरु॑षाणाम् । प॒रि॒ऽपान॑म् । गवा॑म् । अ॒सि॒ । अश्वा॑नाम् । अर्व॑ताम् । प॒रि॒ऽपाना॑य । त॒स्थि॒षे॒ ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिपाणं पुरुषाणां परिपाणं गवामसि। अश्वानामर्वतां परिपाणाय तस्थिषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परिऽपानम् । पुरुषाणाम् । परिऽपानम् । गवाम् । असि । अश्वानाम् । अर्वताम् । परिऽपानाय । तस्थिषे ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    तू (पुरुषाणाम्) अग्रगामी मनुष्यों का (परिपाणम्) रक्षासाधन, और (गवाम्) गौओं का (पारिपाणम्) रक्षासाधन (असि) है। और (अर्वताम्) शीघ्रगामी (अश्वानाम्) घोड़ों के (परिपाणाय) पूर्ण रक्षा के लिये (तस्थिषे) तू ही स्थित हुआ है ॥२॥

    भावार्थ - वह परब्रह्म कृपा करके हमसे सब पदार्थों की रक्षा कराता है, इस कारण अभिमान छोड़कर हम पुरुषार्थ करते रहें ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top