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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगुः देवता - त्रैककुदाञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त

    एहि॑ जी॒वं त्राय॑माणं॒ पर्व॑तस्या॒स्यक्ष्य॑म्। विश्वे॑भिर्दे॒वैर्द॒त्तं प॑रि॒धिर्जीव॑नाय॒ कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒हि॒ । जी॒वम् । त्राय॑माणम् । पर्व॑तस्य । अ॒सि॒ । अक्ष्य॑म् । विश्वे॑भि: । दे॒वै: । द॒त्तम् । प॒रि॒ऽधि: । जीव॑नाय । कम् ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एहि जीवं त्रायमाणं पर्वतस्यास्यक्ष्यम्। विश्वेभिर्देवैर्दत्तं परिधिर्जीवनाय कम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इहि । जीवम् । त्रायमाणम् । पर्वतस्य । असि । अक्ष्यम् । विश्वेभि: । देवै: । दत्तम् । परिऽधि: । जीवनाय । कम् ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (एहि) आ। (जीवम्) जीव को (त्रायमाणम्) पालता हुआ, (पर्वतस्य) पूर्ति करनेवाले वा अवयवोंवाले मेघ के (अक्ष्यम्) व्यवहार के लिये हितकारक, (विश्वेभिः) सब (देवैः) दिव्य गुणों के साथ (दत्तम्) दिया हुआ (कम्) तू सुखस्वरूप ब्रह्म (जीवनाय) हमारे जीवन के लिये (परिधिः) परकोटा रूप (असि) है ॥१॥

    भावार्थ - परमेश्वर मेघ के समान जगत् की रक्षा करनेवाला हमारे हृदयों में विराजमान होकर हमारा प्राणाधार है, ऐसा समझ कर हम पुरुषार्थ के साथ सुख प्राप्त करें ॥१॥

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