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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 10
    सूक्त - भृगुः देवता - त्रैककुदाञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आञ्जन सूक्त

    यदि॒ वासि॑ त्रैककु॒दं यदि॑ यामु॒नमु॒च्यसे॑। उ॒भे ते॑ भ॒द्रे नाम्नी॒ ताभ्यां॑ नः पाह्याञ्जन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । वा॒ । असि॑ । त्रै॒क॒कु॒दम् । यदि॑ । या॒मु॒नम् । उ॒च्यसे॑ । उ॒भे इति॑ । ते॒ । भ॒द्रे इति॑ । नाम्नी॒ इति॑ । ताभ्या॑म् । न॒: । पा॒हि॒ । आ॒ऽअ॒ञ्ज॒न॒ ॥९.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि वासि त्रैककुदं यदि यामुनमुच्यसे। उभे ते भद्रे नाम्नी ताभ्यां नः पाह्याञ्जन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । वा । असि । त्रैककुदम् । यदि । यामुनम् । उच्यसे । उभे इति । ते । भद्रे इति । नाम्नी इति । ताभ्याम् । न: । पाहि । आऽअञ्जन ॥९.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 10

    पदार्थ -
    (यदि वा) चाहे तू (त्रैककुदम्) तीन प्रकार के [आध्यात्मिक आदि] सुखों के पहुँचानेवाले, यद्वा तीनों लोकों वा कालों में गतिवाले पुरुषों का ईश्वर (असि) है, (यदि=यदि वा) चाहे तू (यामुनम्) यमों, नियन्ताओं, न्यायकारियों का हितकारी (उच्यसे) कहा जाता है, (उभे) दोनों (ते) तेरे (नाम्नी) नाम (भद्रे) कल्याणकारक हैं, (आञ्जन) हे संसार के व्यक्त करनेवाले ब्रह्म ! (ताभ्याम्) उन दोनों से (नः पाहि) हमारी रक्षा कर ॥१०॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर के उत्तम उत्तम गुणों का चिन्तन करके पुरुषार्थ के साथ दुष्कर्मों से बचकर सदा आनन्द भोगे ॥१०॥

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