अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 13
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - विराट्पुरस्ताद्बृहती
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
प्रजा॑पते॒ श्रेष्ठे॑न रू॒पेणा॒स्या नार्या॑ गवी॒न्योः। पुमां॑सं पु॒त्रमा धे॑हि दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठप्रजा॑ऽपते । श्रेष्ठे॑न । रू॒पेण॑ । अ॒स्या: । नार्या॑: । ग॒वी॒न्यो: । पुमां॑सम् । पु॒त्रम् । आ । धे॒हि॒ । द॒श॒मे । मा॒सि । सूत॑वे ॥२५.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापते श्रेष्ठेन रूपेणास्या नार्या गवीन्योः। पुमांसं पुत्रमा धेहि दशमे मासि सूतवे ॥
स्वर रहित पद पाठप्रजाऽपते । श्रेष्ठेन । रूपेण । अस्या: । नार्या: । गवीन्यो: । पुमांसम् । पुत्रम् । आ । धेहि । दशमे । मासि । सूतवे ॥२५.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 13
विषय - गर्भाधान का उपदेश।
पदार्थ -
(प्रजापते) हे सृष्टिपालक जगदीश्वर ! (श्रेष्ठेन) श्रेष्ठ (रूपेण) रूप के साथ (अस्याः) इस (नार्याः) नारी की (गवीन्योः) दोनों पार्श्वस्थ नाड़ियों में (पुमांसम्) रक्षा करनेवाला (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (दशमे) दसवें (मासि) महीने में (सूतवे) उत्पन्न होने को (आ) अच्छे प्रकार (धेहि) स्थापित कर ॥१३॥
टिप्पणी -
१३−(प्रजापते) हे सृष्टि पालक जगदीश्वर ॥