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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 25

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - योनिः, गर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त

    गर्भं॑ ते मि॒त्रावरु॑णौ॒ गर्भं॑ दे॒वो बृह॒स्पतिः॑। गर्भं॑ त॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒ गर्भं॑ धा॒ता द॑धातु ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गर्भ॑म् । ते॒ । मि॒त्रावरु॑णौ । गर्भ॑म् । दे॒व: । बृह॒स्पति॑: । गर्भ॑म् । ते॒ । इन्द्र॑:। च॒ । अ॒ग्नि: । च॒ । गर्भ॑म् । धा॒ता । द॒धा॒तु॒ । ते॒ ॥२५.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गर्भं ते मित्रावरुणौ गर्भं देवो बृहस्पतिः। गर्भं त इन्द्रश्चाग्निश्च गर्भं धाता दधातु ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गर्भम् । ते । मित्रावरुणौ । गर्भम् । देव: । बृहस्पति: । गर्भम् । ते । इन्द्र:। च । अग्नि: । च । गर्भम् । धाता । दधातु । ते ॥२५.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (मित्रावरुणौ) प्राण और अपान वायु (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भ को [आधत्ताम्=अच्छे प्रकार पुष्ट करें−म० ३]। (देवः) प्रकाशमान (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े लोकों का रक्षक सूर्य (गर्भम्) गर्भ को, (इन्द्रः) बिजुली (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भ को (च) और (धाता) धारण करनेवाला (अग्निः) और अग्नि (च) भी (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भ को (दधातु) पुष्ट करे ॥४॥

    भावार्थ - प्रयत्न किया जावे कि श्वास-प्रश्वास, सूर्य, शारीरिक बिजुली अग्नि, आदि पदार्थ गर्भवती स्त्री के गर्भ को यथावत् पुष्ट करें ॥४॥

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