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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
    सूक्त - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विजयप्रार्थना सूक्त

    तिस्रो॑ देवी॒र्महि॑ नः॒ शर्म॑ यच्छत प्र॒जायै॑ नस्त॒न्वे॒ यच्च॑ पु॒ष्टम्। मा हा॑स्महि प्र॒जया॒ मा त॒नूभि॒र्मा र॑धाम द्विष॒ते सो॑म राजन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तिस्र॑: । दे॒वी॒: । महि॑ । न॒: । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ । प्र॒ऽजायै॑ । न॒: । त॒न्वे᳡ । यत् । च॒ । पु॒ष्टम् । मा । हा॒स्म॒हि॒ । प्र॒ऽजया॑ । मा । त॒नूभि॑: । मा । र॒धा॒म॒ । द्वि॒ष॒ते । सो॒म॒ । रा॒ज॒न् ॥३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तिस्रो देवीर्महि नः शर्म यच्छत प्रजायै नस्तन्वे यच्च पुष्टम्। मा हास्महि प्रजया मा तनूभिर्मा रधाम द्विषते सोम राजन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तिस्र: । देवी: । महि । न: । शर्म । यच्छत । प्रऽजायै । न: । तन्वे । यत् । च । पुष्टम् । मा । हास्महि । प्रऽजया । मा । तनूभि: । मा । रधाम । द्विषते । सोम । राजन् ॥३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (तिस्रः देवीः) हे तीनों कमनीय गुणवाली शक्तियो ! (नः) हमें (महि) बड़ी (शर्म) शरण वा सुख, (च) और (नः) हमारी (प्रजायै) प्रजा के लिये और (तन्वे) शरीर के लिये (यत्) जो कुछ (पुष्टम्) पोषण है [वह भी] (यच्छत) दान करो। (प्रजया) प्रजा से (मा हास्महि) हम न छूटें और (मा)(तनूभिः) अपने शरीरों से, (सोम) हे ऐश्वर्यवाले (राजन्) राजन् परमेश्वर ! (द्विषते) वैरी के लिये (मा रधाम) हम न दुःखी होवें ॥७॥

    भावार्थ - मनुष्य तीन उत्तम शक्तियों अर्थात् उत्तम विद्या, संग्रह शक्ति और पृथिवी पालन से अपनी और प्रजा की उन्नति करें ॥७॥ तीनों उत्तम शक्तियों का वर्णन य० २७।१९। में इस प्रकार है। ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदं स॑द॒न्त्विडा॒ सर॑स्वती॒ भारती। म॒ही गृणा॒ना ॥ (तिस्रः देवीः) तीन उत्तम शक्तियाँ, अर्थात् (मही) बड़ी पूजनीय और (गृणाना) उपदेश करनेवाली (इडा) स्तुति योग्य भूमि, (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञानवाली विद्या और (भारती) धारण पोषण शक्ति (इदम् बर्हिः) इस वृद्धि कर्म में (आ सदन्तु) आवें ॥

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