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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 21

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 21/ मन्त्र 2
    सूक्त - शन्ताति देवता - चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - केशवर्धनी ओषधि सूक्त

    श्रेष्ठ॑मसि भेष॒जानां॒ वसि॑ष्ठं॒ वीरु॑धानाम्। सोमो॒ भग॑ इव॒ यामे॑षु दे॒वेषु॒ वरु॑णो॒ यथा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्रेष्ठ॑म् । अ॒सि॒ । भे॒ष॒जाना॑म् । वसि॑ष्ठम् । वीरु॑धानाम् । सोम॑: । भग॑:ऽइव । यामे॑षु । दे॒वेषु॑ । वरु॑ण: । यथा॑ ॥२१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रेष्ठमसि भेषजानां वसिष्ठं वीरुधानाम्। सोमो भग इव यामेषु देवेषु वरुणो यथा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्रेष्ठम् । असि । भेषजानाम् । वसिष्ठम् । वीरुधानाम् । सोम: । भग:ऽइव । यामेषु । देवेषु । वरुण: । यथा ॥२१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 21; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (हे ब्रह्म !) तू (भेषजानाम्) भयनाशक पदार्थों में (श्रेष्ठम्) श्रेष्ठ और (वीरुधानाम्) विविध प्रकार से उगती हुई प्रजाओं के बीच (वसिष्ठम्) अत्यन्त धनवाला वा वसनेवाला (असि) है, (इव) जैसे (भगः) ऐश्वर्यवान् (सोमः) चन्द्रमा (यामेषु) चलनेवाले ताराओं के बीच, और (यथा) जैसे (वरुणः) सूर्य (देवेषु) प्रकाशमान पदार्थों में है ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य सर्वश्रेष्ठ परमात्मा का आश्रय लेकर सदा पुरुषार्थ करें ॥२॥

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