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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    सूक्त - शन्ताति देवता - आपः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपांभैषज्य सूक्त

    यन्मे॑ अ॒क्ष्योरा॑दि॒द्योत॒ पार्ष्ण्योः॒ प्रप॑दोश्च॒ यत्। आप॒स्तत्सर्वं॒ निष्क॑रन्भि॒षजां॒ सुभि॑षक्तमाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । मे॒ । अ॒क्ष्यो: । आ॒ऽदि॒द्योत॑ । पार्ष्ण्यो॑: । प्रऽप॑दो: । च॒ । यत् । आप॑: । तत् । सर्व॑म् । नि: । क॒र॒न् । भि॒षजा॑म् । सुभि॑षक्ऽतमा: ॥२४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्मे अक्ष्योरादिद्योत पार्ष्ण्योः प्रपदोश्च यत्। आपस्तत्सर्वं निष्करन्भिषजां सुभिषक्तमाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । मे । अक्ष्यो: । आऽदिद्योत । पार्ष्ण्यो: । प्रऽपदो: । च । यत् । आप: । तत् । सर्वम् । नि: । करन् । भिषजाम् । सुभिषक्ऽतमा: ॥२४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (यत्) जो [दुःख] (मे) मेरे (अक्ष्योः) दोनों नेत्रों में (पार्ष्ण्योः) दोनों एड़ियों में, (च) और (यत्) जो (प्रपदो) पाँव के दोनों पञ्जों में (आदिद्योत) चमक उठा है। (भिषजाम्) वैद्यों में (सुभिषक्तमाः) अति पूजनीय वैद्य रूप (आपः) परमेश्वर की व्यापक शक्तियाँ वा जलधारायें (तत्) उस (सर्वम्) सब को (निष्करन्) हटावें ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वररचित पदार्थों के गुण जानकर अपना रोगनिवारण करें ॥२॥

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