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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
    सूक्त - शन्ताति देवता - आपः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अपांभैषज्य सूक्त

    सि॑न्धुपत्नीः॒ सिन्धु॑राज्ञीः॒ सर्वा॒ या न॒द्य स्थन॑। द॒त्त न॒स्तस्य॑ भेष॒जं तेना॑ वो भुनजामहै ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सिन्धु॑ऽपत्नी: । सिन्धु॑ऽराज्ञी: । सर्वा॑: । या: । न॒द्य᳡: । स्थन॑ । द॒त्त । न॒: । तस्य॑ । भे॒ष॒जम् । तेन॑ । व॒: । भु॒न॒जा॒म॒है॒ ॥२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिन्धुपत्नीः सिन्धुराज्ञीः सर्वा या नद्य स्थन। दत्त नस्तस्य भेषजं तेना वो भुनजामहै ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिन्धुऽपत्नी: । सिन्धुऽराज्ञी: । सर्वा: । या: । नद्य: । स्थन । दत्त । न: । तस्य । भेषजम् । तेन । व: । भुनजामहै ॥२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (सिन्धुपत्नीः) बहनेवाले संसार [वा समुद्र] की पालनेवाली, (सिन्धुराज्ञीः) बहनेवाले जगत् की शासन करनेवाली, [वा समुद्र की शोभा बढ़ानेवाली] (याः) जो तुम (सर्वाः) सब शक्तियाँ (नद्यः) [परमेश्वर की] स्तुति करनेवाली [वा नदियाँ] (स्थन) हो। वे तुम (नः) हमें (तस्य) हिंसक रोग की (भेषजम्) ओषधि (दत्त) दो, (तेन) उससे (वः) तुम्हारे [गुणों को] (भुनजामहै) हम भोगें ॥३॥

    भावार्थ - जिस परमेश्वर ने मनुष्य के सुख के लिये अनन्त रचनायें की हैं, उसकी उपासना करके मनुष्य सदा शान्ति पावें और जल द्वारा रोगनिवृत्ति करें ॥३॥

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