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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगु देवता - यमः, निर्ऋतिः छन्दः - जगती सूक्तम् - अरिष्टक्षयण सूक्त

    देवाः॑ क॒पोत॑ इषि॒तो यदि॒छन्दू॒तो निरृ॑त्या इ॒दमा॑ज॒गाम॑। तस्मा॑ अर्चाम कृ॒णवा॑म॒ निष्कृ॑तिं॒ शं नो॑ अस्तु द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देवा॑: । क॒पोत॑: । इ॒षि॒त: । यत् ।इ॒च्छन् । दू॒त: । नि:ऽऋ॑त्या: । इ॒दम् । आ॒ऽज॒गाम॑ । तस्मै॑ । अ॒र्चा॒म॒ । कृ॒णवा॑म । नि:ऽकृ॑तिम् । शम् । न॒: । अ॒स्तु॒ । द्वि॒ऽपदे॑ । शम् । चतु॑:ऽपदे ॥२७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवाः कपोत इषितो यदिछन्दूतो निरृत्या इदमाजगाम। तस्मा अर्चाम कृणवाम निष्कृतिं शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । कपोत: । इषित: । यत् ।इच्छन् । दूत: । नि:ऽऋत्या: । इदम् । आऽजगाम । तस्मै । अर्चाम । कृणवाम । नि:ऽकृतिम् । शम् । न: । अस्तु । द्विऽपदे । शम् । चतु:ऽपदे ॥२७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 27; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (देवाः) हे विद्वानो ! (इषितः) प्राप्तियोग्य, (निर्ऋत्याः) अलक्ष्मी का (दूतः) नाश करनेवाला, (कपोतः) वरणीय वा स्तुति योग्य [अथवा, कबूतर पक्षी के समान दूरदर्शी और तीक्ष्णबुद्धि] पुरुष (यत्) पूजनीय ब्रह्म को (इच्छन्) खोजता हुआ, (इदम्) इस स्थान में (आजगाम) आया है। (तस्मै) उस विद्वान् के लिये (अर्चाम) हम पूजा करें और (निष्कृतिम्) अपनी निर्मुक्ति (कृणवाम) हम करें, [जिससे] (नः) हमारे (द्विपदे) दो पाये समूह को (शम्) शान्ति और (चतुष्पदे) चौपाये समूह को (शम्) शान्ति (अस्तु) होवे ॥१॥

    भावार्थ - जैसे कबूतर दूर देशों में सन्देश लेजाकर उत्तर लाते हैं, उसी प्रकार दूरदर्शी और बुद्धिमान् ब्रह्मज्ञानी विद्वानों से मनुष्य आदरपूर्वक विद्या प्राप्त करके और दुःखों से मुक्ति पाकर आनन्द भोगे ॥१॥ यह सूक्त ऋग्वेद में कुछ भेद से है−म० १०। सू० १६५। म० १-३। अजमेर वैदिक यन्त्रालय की ऋक्संहिता में [कपोतो नैर्ऋतः] कपोत निर्ऋति का पुत्र ऋषि और [कपोतोपहतौ प्रायश्चित्तं वैश्वदेवम्] कपोत के हनन में, विश्वेदेवा, सब विद्वानों का प्रायश्चित्त देवता है ॥

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