Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 64

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 64/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - विश्वे देवाः, मनः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त

    स॑मा॒नो मन्त्रः॒ समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं व्र॒तं स॒ह चि॒त्तमे॑षाम्। स॑मा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि समा॒नं चेतो॑ अभि॒संवि॑शध्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मा॒न: । मन्त्र॑: । सम्ऽइ॑ति: । स॒मा॒नी । स॒मा॒नम् । व्र॒तम् । स॒ह । चि॒त्तम् । ए॒षा॒म् । स॒मा॒नेन॑ । व॒: । ह॒विषा॑ । जु॒हो॒मि॒ । स॒मा॒नम् । चे॑त: । अ॒भि॒ऽसंवि॑शध्वम् ॥६४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं व्रतं सह चित्तमेषाम्। समानेन वो हविषा जुहोमि समानं चेतो अभिसंविशध्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समान: । मन्त्र: । सम्ऽइति: । समानी । समानम् । व्रतम् । सह । चित्तम् । एषाम् । समानेन । व: । हविषा । जुहोमि । समानम् । चेत: । अभिऽसंविशध्वम् ॥६४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 64; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [हे मनुष्यो तुम्हारा] (मन्त्रः) मन्त्र, विचार (समानः) एकसा, (समितिः) समिति [सामाजिक व्यवस्था] (समानी) एकसी, (व्रतम्) धर्म का आचरण (समानम्) एकसा और (एषाम्) इन तुम सब का (चित्तम्) चित्त [सब पदार्थों का ज्ञान] (सह) मिला हुआ होवे। (समानेन) एक से (हविषा) ग्राह्य धर्म के साथ (वः) तुम को (जुहोमि) मैं ग्रहण करता हूँ, (समानम्) एक से (चेतः) चिन्तन [भूत, भविष्यत् के अनुभव के स्मरण] में (अभिसंविशध्वम्) तुम भली-भाँति प्रवेश करो ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य है कि सदा वेदमार्ग पर चलकर एकचित्त होकर धर्मसभा, विद्यासभा, राजसभा आदि बनाकर बुद्धि, बल, और पराक्रम आदि उत्तम गुण बढ़ावें ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top