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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 79

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 79/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - संस्फानम् छन्दः - त्रिपदा प्राजापत्या जगती सूक्तम् - ऊर्जा प्राप्ति सूक्त

    देव॑ सं॒स्फान॑ सहस्रापो॒षस्ये॑शिषे। तस्य॑ नो रास्व॒ तस्य॑ नो धेहि॒ तस्य॑ ते भक्ति॒वांसः॑ स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देव॑ । स॒म्ऽस्फा॒न॒ । स॒ह॒स्र॒ऽपो॒षस्य॑ । ई॒शि॒षे॒ । तस्य॑ । न॒: । रा॒स्व॒ । तस्य॑ । न: । धे॒हि॒ । तस्य॑ । ते॒ । भ॒क्ति॒ऽवांस॑: । स्या॒म॒ ॥७९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देव संस्फान सहस्रापोषस्येशिषे। तस्य नो रास्व तस्य नो धेहि तस्य ते भक्तिवांसः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देव । सम्ऽस्फान । सहस्रऽपोषस्य । ईशिषे । तस्य । न: । रास्व । तस्य । न: । धेहि । तस्य । ते । भक्तिऽवांस: । स्याम ॥७९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 79; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (संस्फान) हे सब प्रकार वृद्धिवाले (देव) प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (सहस्रपोषस्य) सहस्र प्रकार के पोषण का (ईशिषे) तू स्वामी है। (तस्य) उस [पोषण] का (नः) हमें (रास्व) दान कर, (तस्य) उसका (नः) हमारे लिये (धेहि) धारण कर, (तस्य ते) उस तेरी (भक्तिवांसः) भक्तिवाले (स्याम) हम होवें ॥३॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर की भक्तिपूर्वक पुरुषार्थ करके उसके अक्षय भण्डार से सब प्रकार के अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके सदा सुखी रहें ॥३॥

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