Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 79

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 79/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - संस्फानम् छन्दः - गायत्री सूक्तम् - ऊर्जा प्राप्ति सूक्त

    त्वं नो॒ नभ॑सस्पत॒ ऊर्जं॑ गृ॒हेषु॑ धारय। आ पु॒ष्टमे॒त्वा वसु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । न॒: । न॒भ॒स॒: । प॒ते॒ । ऊर्ज॑म् । गृ॒हेषु॑ । धा॒र॒य॒ । आ । पु॒ष्टम् । ए॒तु॒ । आ । वसु॑ ॥७९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं नो नभसस्पत ऊर्जं गृहेषु धारय। आ पुष्टमेत्वा वसु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । न: । नभस: । पते । ऊर्जम् । गृहेषु । धारय । आ । पुष्टम् । एतु । आ । वसु ॥७९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 79; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (नभसस्पते) हे सूर्यलोक के स्वामी ! (त्वम्) तू (नः) हमारे (गृहेषु) घरों में (ऊर्जम्) बल बढ़ानेवाला अन्न (धारय) धारण कर। (पुष्टम्) पुष्टि (आ) और (वसु) धन (आ एतु) चला आवे ॥२॥

    भावार्थ - सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना करके जो मनुष्य सूर्य की वृष्टि ताप आदि से उपकार लेते हैं, वे ही सब प्रकार की वृद्धि और धन प्राप्त करते हैं ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top