Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 8

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
    सूक्त - जमदग्नि देवता - द्यावापथिवी, सूर्यः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - कामात्मा सूक्त

    यथे॒मे द्यावा॑पृथि॒वी स॒द्यः प॒र्येति॒ सूर्यः॑। ए॒वा पर्ये॑मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । इ॒मे इति॑ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । स॒द्य: । प॒रि॒ऽएति॑ । सूर्य॑: । ए॒व । परि॑ । ए॒मि॒ । ते॒ । मन॑: । यथा॑ । माम् । का॒मिनी॑ । अस॑: । यथा॑ । मत् । न । अप॑ऽगा: ।अस॑:॥८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथेमे द्यावापृथिवी सद्यः पर्येति सूर्यः। एवा पर्येमि ते मनो यथा मां कामिन्यसो यथा मन्नापगा असः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । इमे इति । द्यावापृथिवी इति । सद्य: । परिऽएति । सूर्य: । एव । परि । एमि । ते । मन: । यथा । माम् । कामिनी । अस: । यथा । मत् । न । अपऽगा: ।अस:॥८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 8; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यथा) जैसे (इमे) इस (द्यावापृथिवी) आकाश और भूमि में (सूर्यः) लोकों का चलानेवाला सूर्य (सद्यः) शीघ्र (पर्येति) व्याप जाता है। (एव) वैसे ही (ते) तेरे लिये (मनः) अपना मन (परि एमि) मैं व्यापक करता हूँ, (यथा) जिस से तू (माम् कामिनी) मेरी कामना करनेवाली (असः) होवे, और (यथा) जिस से तू (मत्) मुझ से (अपगाः) बिछुरनेवाली (न)(असः) होवे ॥३॥

    भावार्थ - जो मनुष्य सूर्य के समान नियम से परिश्रम करके विद्या प्राप्त करते हैं, वे परोपकारी होकर सुखी रहते हैं ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top