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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 74

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वाङ्गिराः देवता - जातवेदाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त

    अ॑प॒चितां॒ लोहि॑नीनां कृ॒ष्णा मा॒तेति॑ शुश्रुम। मुने॑र्दे॒वस्य॒ मूले॑न॒ सर्वा॑ विध्यामि॒ ता अ॒हम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प॒ऽचिता॑म् । लोहि॑नीनाम् । कृ॒ष्णा । मा॒ता । इति॑ । शु॒श्रु॒म॒ । मुने॑: । दे॒वस्य॑ । मूले॑न । सर्वा॑: । वि॒ध्या॒मि॒ । ता: । अ॒हम् ॥७८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपचितां लोहिनीनां कृष्णा मातेति शुश्रुम। मुनेर्देवस्य मूलेन सर्वा विध्यामि ता अहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपऽचिताम् । लोहिनीनाम् । कृष्णा । माता । इति । शुश्रुम । मुने: । देवस्य । मूलेन । सर्वा: । विध्यामि । ता: । अहम् ॥७८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (लोहिनीनाम्) रक्तवर्ण (अपचिताम्) गण्डमाला आदि रोगों की (माता) माता (कृष्णा) काले रंगवाली है, (इति) यह (शुश्रुम) हमने सुना है। (अहम्) मैं (मुनेः) मननशील (देवस्य) विद्वान् वैद्य के (मूलेन) मूल ग्रन्थ से (ताः सर्वाः) उन सबको (विध्यामि) छेदता हूँ ॥१॥

    भावार्थ - गण्डमाला आदि चर्म रोगों में पहिले काले धब्बे पड़ते, फिर रक्त वर्ण हो जाते हैं, सद्वैद्य बड़े-बड़े वैद्यों के मूल्य ग्रन्थों से कारण समझकर उनका छेदन आदि करे, इसी प्रकार मनुष्य आत्मदोषों को हटावे ॥१॥ (मूल) ओषधि विशेष भी है, जिसे पीपलामूल कहते हैं ॥ इस सूक्त का मिलान अ० सू० ६।८३। से करो ॥

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