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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 74

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाङ्गिराः देवता - जातवेदाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त

    विध्या॑म्यासां प्रथ॒मां वि॑ध्याम्यु॒त म॑ध्य॒माम्। इ॒दं ज॑घ॒न्यामासा॒मा छि॑नद्मि॒ स्तुका॑मिव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विध्या॑मि । आ॒सा॒म् । प्र॒थ॒माम् । विध्या॑मि । उ॒त । म॒ध्य॒माम् । इ॒दम् । ज॒घ॒न्या᳡म् । आ॒सा॒म् । आ । छि॒न॒द्मि॒ । स्तुका॑म्ऽइव ॥७८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विध्याम्यासां प्रथमां विध्याम्युत मध्यमाम्। इदं जघन्यामासामा छिनद्मि स्तुकामिव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विध्यामि । आसाम् । प्रथमाम् । विध्यामि । उत । मध्यमाम् । इदम् । जघन्याम् । आसाम् । आ । छिनद्मि । स्तुकाम्ऽइव ॥७८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (आसाम्) इन [गण्डमालाओं] में से (प्रथमाम्) पहिली को (विध्यामि) छेदता हूँ, (उत) और (मध्यमाम्) बीचवाली को (विध्यामि) तोड़ता हूँ। (आसाम्) इनमें से (जघन्याम्) नीचेवाली को (इदम्) अभी (आ) सब ओर (छिनद्मि) मैं छिन्न-भिन्न करता हूँ (इव) जैसे (स्तुकाम्) उनके बाल को ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य रोगों के नाश करने में बहुत शीघ्रता करें ॥२॥

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