अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 74/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वाङ्गिराः
देवता - जातवेदाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त
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विध्या॑म्यासां प्रथ॒मां वि॑ध्याम्यु॒त म॑ध्य॒माम्। इ॒दं ज॑घ॒न्यामासा॒मा छि॑नद्मि॒ स्तुका॑मिव ॥
स्वर सहित पद पाठविध्या॑मि । आ॒सा॒म् । प्र॒थ॒माम् । विध्या॑मि । उ॒त । म॒ध्य॒माम् । इ॒दम् । ज॒घ॒न्या᳡म् । आ॒सा॒म् । आ । छि॒न॒द्मि॒ । स्तुका॑म्ऽइव ॥७८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
विध्याम्यासां प्रथमां विध्याम्युत मध्यमाम्। इदं जघन्यामासामा छिनद्मि स्तुकामिव ॥
स्वर रहित पद पाठविध्यामि । आसाम् । प्रथमाम् । विध्यामि । उत । मध्यमाम् । इदम् । जघन्याम् । आसाम् । आ । छिनद्मि । स्तुकाम्ऽइव ॥७८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शारीरिक और मानसिक रोग हटाने का उपदेश।
पदार्थ
(आसाम्) इन [गण्डमालाओं] में से (प्रथमाम्) पहिली को (विध्यामि) छेदता हूँ, (उत) और (मध्यमाम्) बीचवाली को (विध्यामि) तोड़ता हूँ। (आसाम्) इनमें से (जघन्याम्) नीचेवाली को (इदम्) अभी (आ) सब ओर (छिनद्मि) मैं छिन्न-भिन्न करता हूँ (इव) जैसे (स्तुकाम्) उनके बाल को ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य रोगों के नाश करने में बहुत शीघ्रता करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(विध्यामि) छिनद्मि विदारयामि (आसाम्) अपचितां मध्ये (प्रथमाम्) मुख्याम् (विध्यामि) (उत) (मध्यमाम्) (इदम्) इदानीम् (जघन्याम्) हन यङ् लुक्-अच्। पृषोदरादिरूपम् यद्वा। जघन-यत्, इवार्थे। अधमाम् (आसाम्) (आ) समन्तात् (छिनद्मि) भिनद्मि (स्तुकाम्) ष्टुच प्रसादे-क, टाप्, कुत्वम्। ऊर्णस्तुकाम्। रोमस्तोकमात्राम् (इव) यथा ॥
विषय
तीव्र, मध्यम व अल्प' स्थिति में गण्डमाला
पदार्थ
१. दोष के प्रकर्ष, साम्य [मध्यमस्थिति] व अल्पत्व के भेद से गण्डमाला भी तीन भागों में बँट जाती है। (आसाम्) = इन गण्डमालाओं में (प्रथमाम्) = दोषप्रकर्षेण उद्भुत दुश्चिकित्स्य गण्डमाला को (विध्यामि) = बंगसेन तरु के मूल से बींधता हूँ (उत) = और (मध्यमाम्) = दोष साम्य [मध्यम स्थितिवाले दोष] से उद्भूत न अधिक दुःसाध्य गण्डमाला को भी बींधता हूँ। २. (इदम्) = [इदानी] अब (आसाम्) = इन गण्डमालाओं में (जघन्याम्) = अल्पदोष समुद्भूता अतएव थोड़े से प्रयत्न से चिकित्सनीया गण्डमाला को भी (स्तुकाम् इव) = ऊन के बाल की भाँति (आच्छिनधि) = सर्वत: छिन्न कर देता हूँ।
भावार्थ
'तीव्र, मध्यम व अल्प जिस भी स्थिति में गण्डमाला हो, उसे एकदम दूर करना ही अभीष्ट है और यह वंगसेन तरु के मूल से हो सकता है।
भाषार्थ
(आसाम्) इन अपचितों अर्थात् गण्डमालाओं में (प्रथमाम्) मुख्या को (विध्यामि) में बींधता हूं, विदारित करता हूं, (उत) तथा तदनन्तर (मध्यमाम्) मध्यमा गण्डमाला को (विध्यामि) मैं वींधता हूं। (आसाम) इन गण्डमालाओं में (इदम्) अब (जघन्याम्) सुसाध्या गण्डमाला को (आच्छिनद्मि) मैं सुगमता से छेद देता हूं, (स्तुकाम् इव) जैसे कि ऊन के गुच्छे को सुगमता से काट दिया जाता है।
टिप्पणी
[प्रथमा= अधिकदोषयुक्ता। मध्यमा= साम्यदोषयुक्ता। जघन्या= अल्पदोषयुक्ता (गण्डमाला)। अथवा स्थानभेद से प्रथमा, मध्यमा और जघन्या गण्डमाला। जैसे कि अपचितः के सम्बन्ध में कहा है कि “अपाक् चीयमाना गलादारभ्य अधस्तात् कक्षादिसन्धिस्थानेषु प्रसृताः गण्डमालाः अपचितः" (सायण)]।
विषय
गण्डमाला की चिकित्सा।
भावार्थ
(आसाम्) इन गण्डमालाओं में से (प्रथमाम्) प्रथम हुई अपच को (विध्यामि) तेज़ शलाका से या नस्तर से बेंधता हूँ। (उत्) और (मध्माम्) बीचकी को भी छेदता हूं। (इदम्) इसी प्रकार से (आसाम्) इनमें से (जघन्याम्) सबसे निकृष्ट कोटि की अपची को भी (स्तुकाम्) फुन्सी के समान (आ छिनद्मि) काट डालता हूं। दोष की अधिकता, समता और न्यूनता से अपची के तीन भेद हैं, प्रथम, जिसमें अधिक मवाद हो। द्रितीय, जिसमें कम। तृतीय, जिसमें बहुत सामान्य। तीनों की उत्तम रीति से चिकित्सा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। १, २ अपचित-नाशनो देवता, ३ त्वष्टा देवता, ४ जातवेदा देवता। अनुष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Excrescences
Meaning
I pierce the first of them, I pierce the midmost, and I pierce this vilest of them and clear them out like a knot of hair.
Translation
I pierce the first of them; also I pierce the midmost of them; and here I pierce the hindermost of them thoroughly like a knot of wool. (stukam)
Comments / Notes
MANTRA NO 7.78.2AS PER THE BOOK
Translation
I penetrate the fore-most one of these pustules, I Pierce the middle-most and here I perforate the hindermost of this like the lock of hair.
Translation
I pierce the foremost one of these pustules. I perforate one of medium intensity. Here I cut asunder the pustule of. little intensity like a lock of hair.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(विध्यामि) छिनद्मि विदारयामि (आसाम्) अपचितां मध्ये (प्रथमाम्) मुख्याम् (विध्यामि) (उत) (मध्यमाम्) (इदम्) इदानीम् (जघन्याम्) हन यङ् लुक्-अच्। पृषोदरादिरूपम् यद्वा। जघन-यत्, इवार्थे। अधमाम् (आसाम्) (आ) समन्तात् (छिनद्मि) भिनद्मि (स्तुकाम्) ष्टुच प्रसादे-क, टाप्, कुत्वम्। ऊर्णस्तुकाम्। रोमस्तोकमात्राम् (इव) यथा ॥
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