अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 74/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वाङ्गिराः
देवता - जातवेदाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त
45
त्वा॒ष्ट्रेणा॒हं वच॑सा॒ वि त॑ ई॒र्ष्याम॑मीमदम्। अथो॒ यो म॒न्युष्टे॑ पते॒ तमु॑ ते शमयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वा॒ष्ट्रेण॑ । अ॒हम् । वच॑सा । वि । ते॒ । ई॒र्ष्याम् । अ॒मी॒म॒द॒म् । अथो॒ इति॑ । य: । म॒न्यु: । ते॒ । प॒ते॒ । तम् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । श॒म॒या॒म॒सि॒ ॥७८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वाष्ट्रेणाहं वचसा वि त ईर्ष्याममीमदम्। अथो यो मन्युष्टे पते तमु ते शमयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाष्ट्रेण । अहम् । वचसा । वि । ते । ईर्ष्याम् । अमीमदम् । अथो इति । य: । मन्यु: । ते । पते । तम् । ऊं इति । ते । शमयामसि ॥७८.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शारीरिक और मानसिक रोग हटाने का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (त्वाष्ट्रेण) सबके बनानेवाले परमेश्वर के (वचसा) वचन से (अहम्) मैंने (ते) तेरी (ईर्ष्याम्) ईर्ष्या को (वि अमीमदम्) मदरहित कर दिया है (अथो) और (पते) हे स्वामिन् ! [परमेश्वर !] (यः) जो (ते) तेरा (मन्युः) क्रोध है, (ते) तेरे (तम्) उसको (उ) अवश्य (शमयामसि) हम शान्त करते हैं ॥३॥
भावार्थ
जैसे वैद्य द्वारा शारीरिक रोगों की चिकित्सा की जाती है, वैसे ही वेदादि शास्त्रों द्वारा मानसिक रोगों की निवृत्ति करनी चाहिये, जिससे परमेश्वर कभी क्रोध न करे ॥३॥
टिप्पणी
३−(त्वाष्ट्रेण) अ० २।५।६। त्वष्टृ-अण्। सर्वनिर्मातुः परमेश्वरस्य सम्बन्धिना (अहम्) जीवः (वचसा) वचनेन (ते) तव (ईर्ष्याम्) अ० ६।१८।१। परसम्पत्त्यसहनम्। मत्सरम् (वि अमीमदम्) विगतमदां कृतवानस्मि (अथो) अपि च (यः) (मन्युः) क्रोधः (ते) तव (पते) स्वामिन् ! परमेश्वर (तम्) (उ) अवधारणे (ते) (शमयामसि) शमयामः। शान्तं कुर्मः ॥
विषय
ईर्ष्या व क्रोध को दूर करना
पदार्थ
१.हे ईष्योंपेत पुरुष! (ते) = तेरी (ईयाम्) = ईर्ष्या को (त्वाष्ण वचसा) = संसार के निर्माता प्रभु की वाणी से [यथा भूमिर्मतमना मृतान्मतमनस्तरा। यधोत ममुषो मन एवेष्यामतं मनः '६।१८।२'] (अहम्) = मैं (वि अमीमदम्) = विगत मद करता हूँ, अर्थात् दूर करता हूँ-ईर्ष्या को उद्रेक-[प्रबलता]-रहित करता हूँ। २. (अथो) = और हे (पते) = स्वामिन्! (यः ते मन्यु:) = जो तेरा मेरे विषय में क्रोध है, (उ) = निश्चय से तेरे (तम्) = उस क्रोध को (शमयामसि) = हम शान्त करते हैं। वेदवचनों के द्वारा प्रेरित करके तथा अपने मधुर व्यवहार से पत्नी पति की ईर्ष्या व क्रोध को दूर करने का यत्न करे
भाषार्थ
(पते) हे पति ! (त्वाष्ट्रेण, वचसा) जगत् के घड़ने वाले परमेश्वर के वचन अर्थात् मन्त्र द्वारा (ते) तेरी (ईष्याम्) ईर्ष्या को (अहं वि अमीमदम्) मदरहित मैंने कर दिया है। (अथो) तथा (यः ते मन्युः) जो तेरा कोध है, (तम्, उ ते) उस तेरे क्रोध को (शमयामसि) हम शान्त कर देते हैं।
टिप्पणी
[त्वष्टा है, जगत् को प्रकृति से घड़कर रचने वाला परमेश्वर, जैसे कि तष्टा अर्थात् बढ़ई, तर्खान, लकड़ी से वस्तुओं को घड़ निकालता है। "त्वष्टा त्वक्षतेर्वा स्यात् कर्मणः" (निरुक्त, त्वष्टा पद (११); ८।२।१४)। त्वक्षू तनूकरणे (भ्वादिः)। यथा "य इमे द्यावापृथिवी जनित्रीरूपैरपिंशद् भुवनानि विश्वा। तमद्य होतरिषितो यजीयान् देवं त्वष्टारमिह यक्षि विद्वान्” (ऋ० १०।११०।९)। अभिप्राय यह कि त्वष्टा अर्थात् जगद्रचयिता के मन्त्रों में ईर्ष्या के निराकरण सम्बन्धी प्रदर्शित विधियों द्वारा हे पति ! हम तेरी ईर्ष्या के मद अर्थात् उद्रेक को निवारित करते हैं; तथा तेरे मन्यु को अनुनय-विनय द्वारा हम शान्त कर देते हैं। सम्भवतः ईर्ष्या-स्वभाव और गण्डमाला का परस्पर कारण कार्य सम्बन्ध हो]।
विषय
गण्डमाला की चिकित्सा।
भावार्थ
ईर्ष्या का उपाय। भा०- पति कहता है। हे पत्नी ! मैं (ते) तेरे हृदय की (ईर्ष्याम्) ईर्ष्या के भाव या दूसरे की उन्नति और कीर्ति को देखकर दिल में पैदा हुई जलन को (त्वाष्ट्रेण) त्वष्टा इन्द्र परमेश्वर या पति के (वचसा) वचनों से, अर्थात् पति-पद पर रहकर उसीके पदके योग्य अपने मधुर वचनों से (वि अमीमदम्)* तृप्त करता हूं दूर करता हूं, या शान्त करता हूं। स्त्री कहती है। हे (पते) स्वामिन् ! पालक नाथ ! प्राणपते ! (अथ) इसके बाद भी (यः) जो (ते) तेरा (मन्युः) क्रोध मेरे प्रति हो (तम् उ) उसको भी (शमयामसि) हम शांत करें। इस ऋचा के पूर्वार्ध में पत्नि के प्रति पतिका वचन और उत्तरार्ध में पति के प्रति पत्नी का वचन है। त्वष्टा पशूनां मिथुनानां रूपकृद्रूपपतिः। तै० ३। ८। ११। २॥ त्वष्टा वै रेतः सिक्तं विकरोति। कौ० ३। ९॥ रेतः सिर्क्तिव त्वाष्ट्रः॥ कौ० ११। ६॥ त्वष्टा, पशुओं का या दम्पति जोड़ों का बनाने वाला रूपपति (सब जीव जातियों का स्वामी) है। वही प्रभु माता के गर्भों में समानरूप से सिक्त वीर्य को नाना प्रकार से परिपक्व करके भिन्न रूप का बनाता है। अथवा रेतः-सेचन का कार्य त्वष्टा का है अतः स्वष्टा= प्रजापति और पति।
टिप्पणी
मद तृप्तियोगे (चुरादिः), मदी हर्षग्लेपनयोः (दिवादिः) मदि मोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु (भ्वादि:), मदी हर्षे (भ्वादि:)।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। १, २ अपचित-नाशनो देवता, ३ त्वष्टा देवता, ४ जातवेदा देवता। अनुष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Excrescences
Meaning
With words well chosen and chiselled, I cure your jealousy, and, O master, the anger that distresses you, we pacify.
Translation
With the words of the universal mechanic (Tvastr), I have quelled your jealousy. Thereafter, O husband, whatever anger you have, that also we pacify.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.78.3AS PER THE BOOK
Translation
O husband; I, the wife dispel your jealousy with Divine speech and I also mitigate and calm down the anger that you feel in yourself.
Translation
O wife, I dispel thy jealousy with the Word of God, O husband, we mitigate and pacify the anger that thou feelest!
Footnote
Word of God: As ordained in the Vedas.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(त्वाष्ट्रेण) अ० २।५।६। त्वष्टृ-अण्। सर्वनिर्मातुः परमेश्वरस्य सम्बन्धिना (अहम्) जीवः (वचसा) वचनेन (ते) तव (ईर्ष्याम्) अ० ६।१८।१। परसम्पत्त्यसहनम्। मत्सरम् (वि अमीमदम्) विगतमदां कृतवानस्मि (अथो) अपि च (यः) (मन्युः) क्रोधः (ते) तव (पते) स्वामिन् ! परमेश्वर (तम्) (उ) अवधारणे (ते) (शमयामसि) शमयामः। शान्तं कुर्मः ॥
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