Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 76

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 76/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - जायान्यः, इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त

    धृ॒षत्पि॑ब क॒लशे॒ सोम॑मिन्द्र वृत्र॒हा शू॑र सम॒रे वसू॑नाम्। माध्य॑न्दिने॒ सव॑न॒ आ वृ॑षस्व रयि॒ष्ठानो॑ र॒यिम॒स्मासु॑ धेहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धृ॒षत् । पि॒ब॒ । क॒लशे॑ । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । शू॒र॒ । स॒म्ऽअ॒रे । वसू॑नाम् । माध्यं॑दिने । सव॑ने । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । र॒यि॒ऽस्थान॑: । र॒यिम् । अ॒स्मासु॑ । धे॒हि॒ ॥८१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धृषत्पिब कलशे सोममिन्द्र वृत्रहा शूर समरे वसूनाम्। माध्यन्दिने सवन आ वृषस्व रयिष्ठानो रयिमस्मासु धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धृषत् । पिब । कलशे । सोमम् । इन्द्र । वृत्रऽहा । शूर । सम्ऽअरे । वसूनाम् । माध्यंदिने । सवने । आ । वृषस्व । रयिऽस्थान: । रयिम् । अस्मासु । धेहि ॥८१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 76; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (धृषत्) हे निर्भय ! (शूर) हे शूर ! (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवान् मनुष्य ! (वसूनाम्) धनों के निमित्त (समरे) युद्ध में (वृत्रहा) शत्रुनाशक हो कर (कलशे) [संसाररूप] कलश में [वर्तमान] (सोमम्) अमृत रस को (पिब) पी। (माध्यन्दिने) मध्य दिन के (सवने) काल वा स्थान में (आ वृषस्व) सब प्रकार बली हो, (रयिस्थानः) धनों का स्थान तू (रयिम्) धन को (अस्मासु) हम लोगों में (धेहि) धारण कर ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्य ब्रह्मचर्य आदि पथ्य कर्मों से स्वस्थ, बलवान् और मध्याह्न सूर्य के समान तेजस्वी होकर विद्या धन और सुवर्ण आदि धनसंचय करके सबको सुखी रक्खें ॥६॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−६।४७।६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top