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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 11
    सूक्त - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त

    यथा॒ सोमः॑ प्रातःसव॒ने अ॒श्विनो॑र्भवति प्रि॒यः। ए॒वा मे॑ अश्विना॒ वर्च॑ आ॒त्मनि॑ ध्रियताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । सोम॑: । प्रा॒त॒:ऽस॒व॒ने । अश्विनो॑: । भव॑ति । प्रि॒य: । ए॒व । मे॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । वर्च॑: । आ॒त्मनि॑ । ध्रि॒य॒ता॒म् ॥१.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा सोमः प्रातःसवने अश्विनोर्भवति प्रियः। एवा मे अश्विना वर्च आत्मनि ध्रियताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । सोम: । प्रात:ऽसवने । अश्विनो: । भवति । प्रिय: । एव । मे । अश्विना । वर्च: । आत्मनि । ध्रियताम् ॥१.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 11

    पदार्थ -
    (यथा) जैसे (सोमः) ऐश्वर्यवान् आत्मा। [बालक] (प्रातःसवने) प्रातःकाल के यज्ञ [बालकपन] में (अश्विनोः) [कार्यकुशल] माता-पिता का (प्रियः) प्रिय (भवति) होता है। (एव) वैसे ही, (अश्विना) हे [कार्यकुशल] माता-पिता ! (मे) मेरे (आत्मनि) आत्मा में [विद्या का] (वर्चः) प्रकाश (ध्रियताम्) धरा जावे ॥११॥

    भावार्थ - जिस प्रकार चतुर माता-पिता अपने होनहार बालक का हित करते हैं, उसी प्रकार सब निपुण माता-पिता और आचार्य बालकों को शिक्षा देकर उत्तम बनावें ॥११॥

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