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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 14
    सूक्त - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - पुरउष्णिक् सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त

    मधु॑ जनिषीय॒ मधु॑ वंशिषीय। पय॑स्वानग्न॒ आग॑मं॒ तं मा॒ सं सृ॑ज॒ वर्च॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ । ज॒नि॒षी॒य॒ । मधु॑ । वं॒शि॒षी॒य॒ । पय॑स्वान् । अ॒ग्ने॒ । आ । अ॒ग॒म॒म् । तम् । मा॒ । सम् । सृ॒ज॒ । वर्च॑सा ॥१.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधु जनिषीय मधु वंशिषीय। पयस्वानग्न आगमं तं मा सं सृज वर्चसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधु । जनिषीय । मधु । वंशिषीय । पयस्वान् । अग्ने । आ । अगमम् । तम् । मा । सम् । सृज । वर्चसा ॥१.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (मधु) ज्ञान को (जनिषीय) मैं उत्पन्न करूँ, (मधु) ज्ञान की (वंशिषीय) याचना करूँ। (अग्ने) हे विद्वान् ! (पयस्वान्) गतिवाला मैं (आ अगमम्) आया हूँ, (तम्) उस (मा) मुझको (वर्चसा) [वेदाध्ययन आदि के] प्रकाश से (सम् सृज) संयुक्त कर ॥१४॥

    भावार्थ - मनुष्य ज्ञान का प्रचार और जिज्ञासा करके संसार में कीर्ति प्राप्त करें ॥१४॥ इस मन्त्र का उत्तर भाग आ चुका है-अ० ७।८९।१ ॥

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