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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 53

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 3
    सूक्त - भृगुः देवता - कालः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त

    पू॒र्णः कु॒म्भोऽधि॑ का॒ल आहि॑त॒स्तं वै पश्या॑मो बहु॒धा नु सन्तः॑। स इ॒मा विश्वा॒ भुव॑नानि प्र॒त्यङ्का॒लं तमा॒हुः प॑र॒मे व्योमन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒र्णः। कु॒म्‍भः। अधि॑। का॒ले। आऽहि॑तः। तम्। वै। पश्या॑मः। ब॒हु॒ऽधा। नु। स॒न्तः। सः। इ॒मा। विश्वा॑। भुव॑नानि। प्र॒त्यङ्। का॒लम्। तम्। आ॒हुः॒। प॒र॒मे। विऽओ॑मन् ॥५३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्णः कुम्भोऽधि काल आहितस्तं वै पश्यामो बहुधा नु सन्तः। स इमा विश्वा भुवनानि प्रत्यङ्कालं तमाहुः परमे व्योमन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्णः। कुम्‍भः। अधि। काले। आऽहितः। तम्। वै। पश्यामः। बहुऽधा। नु। सन्तः। सः। इमा। विश्वा। भुवनानि। प्रत्यङ्। कालम्। तम्। आहुः। परमे। विऽओमन् ॥५३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 3

    Meaning -
    The universe is a full, complete and perfect vessel settled on Time. That we see becoming and evolving manifold. That which is present upfront before all these worlds of the universe, the sages call ‘Kala’, Time, which extends upto the ultimate, supreme transcendent heaven.

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