Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 55

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 55/ मन्त्र 2
    सूक्त - भृगुः देवता - अग्निः छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - रायस्पोष प्राप्ति सूक्त

    या ते॒ वसो॒र्वात॒ इषुः॒ सा त॑ ए॒षा तया॑ नो मृड। रा॒यस्पोषे॑ण॒ समि॒षा मद॑न्तो॒ मा ते॑ अग्ने॒ प्रति॑वेशा रिषाम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ते॒। वसोः॑। वातः॑। इषुः॑। सा। ते॒। ए॒षा। तया॑। नः॒। मृ॒ड॒। रा॒यः। पोषे॑ण। सम्। इ॒षा। मद॑न्तः। मा। ते॒। अ॒ग्ने॒। प्रति॑ऽवेशाः। रि॒षा॒म॒ ॥५५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ते वसोर्वात इषुः सा त एषा तया नो मृड। रायस्पोषेण समिषा मदन्तो मा ते अग्ने प्रतिवेशा रिषाम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या। ते। वसोः। वातः। इषुः। सा। ते। एषा। तया। नः। मृड। रायः। पोषेण। सम्। इषा। मदन्तः। मा। ते। अग्ने। प्रतिऽवेशाः। रिषाम ॥५५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 55; मन्त्र » 2

    Meaning -
    O Agni, leading light of humanity, giver of peace and settlement, the windy missile that is yours is under your control here. With that, pray give us peace, prosperity and security. O Agni, pioneer and leader, may we, your friends and inmates, enjoying ourselves with health, wealth, food and energy, never suffer hurt and loss in life.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top