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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 23

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 6
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२३

    स म॑न्दस्वा॒ ह्यन्ध॑सो॒ राध॑से त॒न्वा म॒हे। न स्तो॒तारं॑ नि॒दे क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । म॒न्द॒स्व॒ । हि । अन्ध॑स: । राध॑से । त॒न्वा॑ । म॒हे ॥ न । स्तो॒तार॑म् । नि॒दे । क॒र॒: ॥२३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स मन्दस्वा ह्यन्धसो राधसे तन्वा महे। न स्तोतारं निदे करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । मन्दस्व । हि । अन्धस: । राधसे । तन्वा । महे ॥ न । स्तोतारम् । निदे । कर: ॥२३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 6

    Meaning -
    Indra, lord lover of soma and commander of power, rejoice at heart with your whole personality for the realisation of food, energy and wealth of life. Let not your devotee and celebrant face an occasion of embarrassment, blame, insult or contempt.

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