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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 15/ मन्त्र 4
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - मधुलौषधिः छन्दः - पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - रोगोपशमन सूक्त

    चत॑स्रश्च मे चत्वारिं॒शच्च॑ मेऽपव॒क्तार॑ ओषधे। ऋत॑जात॒ ऋता॑वरि॒ मधु॑ मे मधु॒ला क॑रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चत॑स्र: । च॒ । मे॒ । च॒त्वा॒रिं॒शत् । च॒ । मे॒ । अ॒प॒ऽव॒क्तार॑: । ओ॒ष॒धे॒ । ऋत॑ऽजाते । ऋत॑ऽवारि । मधु॑ । मे॒ । म॒धु॒ला । क॒र॒:॥१५.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चतस्रश्च मे चत्वारिंशच्च मेऽपवक्तार ओषधे। ऋतजात ऋतावरि मधु मे मधुला करः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चतस्र: । च । मे । चत्वारिंशत् । च । मे । अपऽवक्तार: । ओषधे । ऋतऽजाते । ऋतऽवारि । मधु । मे । मधुला । कर:॥१५.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 15; मन्त्र » 4

    Meaning -
    O Oshadhi, born of the truth and law of existence, observer of the laws of life, creator of honey sweets, let there be four or forty, any number of polluters, abusers and revilers of health and happiness, four, and even forty may be, create for us the honey sweets of life and joy in spite of them.

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